Book Title: Antim Tirthankar Mahavira
Author(s): Shakun Prakashan Delhi
Publisher: Shakun Prakashan Delhi

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Page 124
________________ और पराक्रम को उपस्थित किया, वह संसार के अन्य मनीषियों और विचारकों में नहीं मिलता। भगवान महावीर ने सत्य के सम्बन्ध में जो विचार प्रकट किये हैं, वे मननीय ही नहीं, भजनीय भी हैं : १. हे पुरुष, तू सत्य को ही सच्चा तत्त्व समझ। जो बुद्धिमान सत्य के ही आदेश में रहता है, वह मृत्यु को तर कर पार कर सकता है। २. आत्मा ही सत्य है, शेष सत्य मिथ्या है। ३. काने को काना, नपुंसक को नपुंसक, रोगी को रोगी और चोर को चोर कहना यद्यपि सत्य है, तथापि ऐसा नहीं कहना चाहिए, क्योंकि इससे इन व्यक्तियों को दुःख पहुंचता है। ४. जो भाषा कठोर हो, दूसरों को भारी दुख पहुंचाने वाली हो, वह सत्य ही क्यों न हो, नहीं बोलनी चाहिए। ५. धर्म की उत्पत्ति सत्य से होती है और दया-दान से बढ़ती है। ६. सत्य का निवास स्थान हृदय में होता है और सदा सत्य की विजय होती है। ७. सत्य यह है कि आत्मबली के समक्ष अग्नि ठंडी हो जाती है, शस्त्र व्यर्थ हो जाता है और विष अमृत बन जाता है। अस्तेय पंच-महाव्रतों में अस्तेय का तृतीय स्थान है। आत्मा के विकास और लौकिक सुख-शान्ति के लिए अस्तेय का अधिक १२२

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