Book Title: Antim Tirthankar Mahavira
Author(s): Shakun Prakashan Delhi
Publisher: Shakun Prakashan Delhi

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Page 133
________________ ३. ज्ञानी पुरुष संयम-साधक उपकरणों के लेने और रखने में किसी भी प्रकार का ममत्व नहीं करते। वे अपने शरीर पर भीममता नहीं रखते। ४. संग्रह करना-यह अन्तर रखने वाले लोभ की झलक है। अतएव मैं मानता हूं कि जो साघु मर्यादा-विरुद्ध कुछ भी संग्रह करना चाहता है, वह गृहस्थ है, साधु नहीं।। भगवान महावीर ने निर्वाण की सीढ़ियों में आत्मा, कर्म, विनय, समता, इन्द्रिय-निर्ग्रह, तप, ध्यान और क्षमा आदि को भी महत्त्वपूर्ण स्थान दिया है । उन्होंने मनुष्य को इन सभी क्षेत्रों में चलने और अग्रसर होने की प्रेरणा दी है। उन्होंने जहां आत्मचिन्तन पर बल दिया है, वहीं उन्होंने कर्म की सत्ता भी स्थापित की है। जहां तप, ध्यान और उपासना को महत्त्वपूर्ण बताया है, वहीं आत्मा की पवित्रता को प्रमुखता प्रदान की है। उन्होंने विनय, समता, क्षमा, धर्म और मानवता के क्षेत्र में आगे बढ़ाकर मनुष्य को देवतुल्य बनाने का सफल प्रयत्न किया है। उनकी शरण में जो गया, जिसने अपने जीवन को उनके उपदेशों के सांचे में ढाला या ढालने का प्रयत्ल किया, वह धन्य हो गया, मनुष्य होते हुए भी देव-पद पर प्रतिष्ठित हो गया। यहां तक कि वह मनुष्य से परमात्मा बन गया। सदा के लिए संसार से मुक्त हो गया। सब दुखों के बन्धनों से छूट गया । क्यों न हो, महावीर स्वामी का दृष्टिकोण बड़ा महान् था। उनके उपदेशों में आत्मा को परमात्मा बनाने की शक्ति थी। १३१

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