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मानकर अपने ही प्रति अविश्वास प्रकट करता है।
विचारों के प्रति आग्रह प्रकट करना हिंसा है। यदि सत्य है तो उसे स्वीकार करो, पर आग्रह मत करो। आग्रह से सत्य भी डूब जाता है। विचारों को लेकर परस्पर खींचातानी न करो। यह आग्रह मत करो कि दूसरा मनुष्य तुम्हारे विचारों को मान ही ले ।
जातिवाद व्यर्थ है । जातिवाद के प्रपंचों में वही फंसता है, जो सत्य से अपरिचित है। काले-गोरे, अच्छे-बुरे, स्त्री-पुरुष, युवा-वृद्ध--सब में परमात्मा विद्यमान है। जाति का अहंकार मत करो। दूसरों को अपने से हीन मानकर गर्व मत करो। दूसरों से अपने को हीन मानकर दीन मत बनो। सर्वत्रसमभाव रखो। ___ सुख-दुख दोनों ही मन की उपज हैं । तुम्हीं स्वयं अपने मित्र हो, तुम्ही स्वयं अपने शत्रु भी हो। तुम क्या बनना चाहते हो, इसका निर्णय तो तुम्हीं को करना है।
प्रत्येक आत्मा में भगवान है। उसको प्रकट करने पर प्रत्येक आत्मा भगवान बन जाती है।
समता ही वास्तविक धर्म है । लाभ-हानि, सुख-दुख, जीवनमरण, निन्दा-प्रशंसा, मान-अपमान-सबमें समभाव रखो।
जीवों को मारना और वैर-विरोध रखना हिंसा है, वैसे ही एकान्त दृष्टि और मिथ्या आग्रह भी हिंसा है।
आत्मा न हीन है, न उच्च । सब समान है। धर्म का आलय आत्मा ही है।
गृहस्थ के वेश में वह मनुष्य भी परमात्मा बन जाता है, जो
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