Book Title: Antim Tirthankar Mahavira
Author(s): Shakun Prakashan Delhi
Publisher: Shakun Prakashan Delhi

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Page 123
________________ परम-धर्म मानते हैं। तो यह सत्य है क्या? इसके सम्बन्ध में वर्णित यह कथन मननीय है- 'जो कुछ भूतों के लिए कल्याणकारी है, वही सत्य है। पक्षपात का अभाव, इन्द्रिय-जय, अमात्सर्य, सहिष्णुता, लज्जा, दुखी को अप्रतिकारपूर्वक सहन करने की क्षमता, गुणों में दोषों का दर्शन करना, दान, ध्यान, करने योग्य कार्य को करने की एवं न करने योग्य कार्यो को न करने की आन्तरिक वृत्ति, स्वयं और पर का उद्धार करने वाली दया और अहिंसा-ये तेरह सत्य के ही आकार हैं।" विश्व के सभी बड़े-बड़े दार्शनिक और महात्मा सत्य को ही ग्रहण करके बढ़े हैं। श्रीकृष्ण ने गीता में स्पष्ट शब्दों में कहा है-"जो सत्य को अपनाता है, वही मुझे पाता है ।" महात्मा ईसा ने अपने शिष्यों को उपदेशित करते हुए कहा है- “सत्य को ग्रहण करो। सत्य ही ईश्वर है।" महात्मा बुद्ध ने भी सत्य की महत्ता पर बल दिया है। आधुनिक युग के महामानव महात्मा गांधी भी सत्य को ईश्वर का प्रतिरूप मानते हैं। इतना ही नहीं, वह इसके आगे भी कहते हैं- "सत्य ही ईश्वर है और ईश्वर ही सत्य है।" भगवान महावीर ने आजीवन सत्य का ही प्रचार किया। उन्होंने सत्य को प्रकट करने के लिए साढ़े बारह वर्षों तक तप किया और बड़े-बड़े कष्ट झेले। उन्होंने महान पुरुषार्थ के द्वारा सत्य को प्रकट करने के लिए ही असीम शक्ति प्राप्त की। उन्होंने महान शक्ति प्राप्त करके बड़े साहस के साथ, बड़ी निर्भीकता के साथ जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सत्य को उद्भासित किया। सत्य को प्रकट करने में भगवान महावीर ने जिस शौर्य १२१

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