Book Title: Antim Tirthankar Mahavira
Author(s): Shakun Prakashan Delhi
Publisher: Shakun Prakashan Delhi

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Page 121
________________ वह अहिंसा की साधना नहीं कर सकता । अहिंसक अपने से शत्रुता रखने वालों को प्रिय मित्र मानता है, वह अप्रिय वचन को समभाव से सहता है । जो प्रिय और अप्रिय में सम रहता है, वह समदृष्टि है, वह अहिंसक है। ३. छोटे-बड़े किसी भी प्राणी की हिंसा न करना, बिना दी हुई वस्तु न लेना, विश्वासघाती असत्य न बोलना - यह आत्मा-निग्रह ही सत्पुरुषों का धर्म है । ४. जो मनुष्य प्राणियों की स्वयं हिंसा करता है, दूसरों से हिंसा कराता है और हिंसा करनेवालों का अनुमोदन करता है, वह संसार में अपने लिए वंर को बढ़ाता है । ५. संसार में रहनेवाले चल और स्थावर जीवों पर मन, वचन और शरीर से किसी भी प्रकार का दण्ड प्रयोग नहीं करना चाहिए । ६. सभी जीव जीना चाहते हैं, मरना कोई नहीं चाहता । इसलिए निर्ग्रन्थ ( जैन - मुनि) घोर प्राणी-वध का सर्व परित्याग करते हैं । ७. ज्ञानी होने का सार यही है कि वह किसी भी प्राणी की हिंसा न करे | इतना ही अहिंसा के सिद्धान्त का ज्ञान यथेष्ट है । यही अहिंसा का विज्ञान है । ८. प्रत्येक प्राणी एक-सी पीड़ा का अनुभव करता है । प्रत्येक प्राणी का एक ही लक्ष्य है - मुक्ति । सत्य भगवार महावीर ने अहिंसा के साथ-ही-साथ सत्य पर भी ११६

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