Book Title: Antim Tirthankar Mahavira
Author(s): Shakun Prakashan Delhi
Publisher: Shakun Prakashan Delhi

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Page 129
________________ करता है। उसे कई सीढ़ियां बनानी पड़ती हैं, कई सीढ़ियों पर चलना पड़ता है । फलतः उसे शरीर और आत्मा, दोनों प्रकार की शक्तियों की अधिक आवश्यकता होती है। उसकी उस आवश्यकता की पूर्ति ब्रह्मचर्य से ही हो सकती है, केवल सिद्धान्त से नहीं । अनुभवों से भी यह बात सिद्ध होतो है कि जो गृहस्थ ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हैं, संयमपूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं, वे सर्वाधिक सुखी रहते हैं। केवल धन-धान्य की दृष्टि से नहीं, शरीर और मन की दृष्टि से भी वे अधिक तेजवान और शक्तिवान होते हैं । साधु और मुनि के लिए तो ब्रह्मचर्य अचूक रसायन के समान है । साधु और मुनि का सब कुछ तो ब्रह्मचर्य के ही ऊपर निर्भर करता है। भगवान महावीर ने गृहस्थ और मुनि, दोनों को ब्रह्मचर्य की राह दिखाकर उन्हें बलवान और तेजवान बनाने का स्तुत्य प्रयत्न किया है। भगवान की निम्नांकित वाणियों में उनके उस स्तुत्य प्रयत्न की झलक देखी जा सकती है : १. यह अब्रह्मचर्य अधर्म का मूल है, महादोषों का स्थान है, इसलिए निर्ग्रन्थ मुनि मैथुन - संसर्ग का सर्वथा परित्याग करते हैं । २. आत्मा-शोधक मनुष्य के लिए शरीर का श्रृंगार, स्त्रियों का संसर्ग और पौष्टिक- स्वादिष्ट भोजन, सब तालपुट विष के समान महाभयंकर हैं । ३. श्रमण तपस्वी स्त्रियों के रूप, लावण्य, विलास, हास्य, मधुर वचन और संकेत, चेष्टा, हाव-भाव और कटाक्ष आदि का मन में तनिक भी विचार न लाए और न इन्हें देखने का १२७

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