Book Title: Antim Tirthankar Mahavira
Author(s): Shakun Prakashan Delhi
Publisher: Shakun Prakashan Delhi

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Page 114
________________ निर्वारण की सीढ़ियां मानव जीवन का परम लक्ष्य है निर्वाण प्राप्त करनाआत्मा को परमात्मा बना देना । पर प्रश्न यह है कि मनुष्य क्या करे कि उसे निर्वाण प्राप्त हो, उसे अपने स्वरूप का ज्ञान हो। क्या वह यज्ञ करे ? क्या वह तीथों में परिभ्रमण करे ? क्या वह मन्दिरों में जाकर देवताओं के दर्शन करे ? अवश्य, वह इन कार्यों को करे, पर उसे अपने मन और अपनी आत्मा को परिष्कृत बनाने का विशेष रूप से प्रयत्न करना चाहिए। यदि मन और आत्मा परिष्कृत है, तो उक्त बाह्य साधनों से कुछ सहायता प्राप्त हो सकती है। इसके विपरीत यदि मन और आत्मा में मलिनता है तो उक्त बाह्य साधन आडम्बर मात्र रह् जाते हैं । इस सम्बन्ध में भगवान महावीर का मत दृष्टव्य हैसुख-दुख की कर्ता आत्मा है। वही मित्र है, और वही शत्रु है । आत्मा पर अनुशासन कर ! आत्मा पर विजय प्राप्त करने वाला ही विश्वजित् होता है और वह सभी प्रकार के दुःख ११२

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