Book Title: Antim Tirthankar Mahavira
Author(s): Shakun Prakashan Delhi
Publisher: Shakun Prakashan Delhi

View full book text
Previous | Next

Page 112
________________ भी कोई सीमा होती है। भद्रा जब पीड़ा और दुख सहते-सहते ऊब उठी, तो घर से निकल गई। उसके लिए उस समय सारा संसार सूना और अंधकारमय हो रहा था। सारा जगत ही उसे एक दानव की भांति दृष्टिगोचर हो रहा था। उसके मन में संसार और संसार के लोगों के प्रति अरुचि हो उठी। वह अपने लिए किसी ऐसे स्थान की खोज करने लगी, जहां उसके व्याकुल मन को शान्ति प्राप्त हो सके। ___ आखिर भद्रा 'आजिका संघ' में सम्मिलित हो गई। उसने अपने शरीर के अच्छे वस्त्र और आभूषण उतारकर फेंक दिए। वह खद्दर की मोटी घोती पहनकर पूरी तपस्विनी बन गई। उसने अपने सिर के लम्बे-लम्बे केश भी नोचकर फेंक दिए। केवल शरीर से ही नहीं, मन से भी वह तपस्विनी का जीवन व्यतीत करने लगी, साधना और संयम के मार्ग पर चलने लगी। शनैः शनैः उसके हृदय में ज्ञान का प्रकाश प्रकट होने लगा। भगवान महावीर के उपदेशों को सुनने का जब उसे सौभाग्य प्राप्त हुआ, तब तो उसके हृदय की समस्त गांठे खुल गईं। भगवान के उपदेशों का अमृत पीकर वह लोकवासिनी होते हुए भी दिव्या बन गई। महान् और वन्दनीय दिव्या !! इस प्रकार अनेक गृहस्थों, नपतियों, साधुओं, राजकुमारों, राजकुमारियों, अमीरों, साहूकारों और विद्वानों ने भगवान महावीर से दीक्षा लेकर अपने जीवन को सार्थक बनाया था। काशी, कलिंग, बंग, पाण्डु, ताम्रलिपि, मैसूर, श्रावस्ती, विदेह, अंगदेश, कौशाम्बी आदि देशों में भगवान महावीर के

Loading...

Page Navigation
1 ... 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149