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भद्रा की कथा बड़ी प्राण-प्रेरक है । भद्रा बहुत विदुषी और सुशिक्षिता थी । उसने श्रावस्ती में बोद्ध आचार्य सारिपुत्र से शास्त्रार्थ करके सबको विस्मय में डाल दिया था । पर भद्रा के आरम्भिक जीवन की कहानी आसक्ति के बन्धनों से जकड़ी हुई है । भद्रा राजगृह के एक प्रमुख राज कर्मचारी की पुत्री थी । उसका जीवन बड़े सुख और शान्ति के साथ बीत रहा था । पर उसके जीवन में एक ऐसी घटना घटी, जिसने उसके जीवन-रंगमंच का पर्दा ही बदल दिया ।
बात यह हुई कि एक दिन हठात् ही भद्रा की दृष्टि एक डाकू पर पड़ी। डाकू का नाम केसा था । केसा देखने में बड़ा सुन्दर और हृष्ट-पुष्ट था । भद्रा केसा को देखकर उस पर विमुग्ध हो गई। उसने निश्चय किया कि वह केसा को छोड़कर और किसी के साथ विवाह नहीं करेगी । भद्रा के माता-पिता ने उसे बहुत समझाया कि वह केसा से विवाह करने का अपना आग्रह छोड़ दे। पर भद्रा के हृदय पर किसी के समझाने-बुझाने का कुछ प्रभाव न पड़ा। वह अपने निश्चय पर दृढ़ रही । आखिर माता-पिता ने विवश होकर भद्रा का विवाह केसा के साथ कर दिया ।
भद्रा केसा के घर रहने लगी। पर कुछ ही दिनों में भद्रा और केसा में अनबन हो गई । केसा के कुत्सित आचरणों ने भद्रा के मन में विरक्ति पैदा कर दी। वह मन-ही-मन पश्चाताप करने लगी कि उसने केसा के साथ विवाह करके बहुत बड़ी भूल की । पर अब तो विवाह हो ही चुका था । भद्रा दुख और पीड़ा की आग में जलने लगी। पर दुख और पीड़ा सहने की
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