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३. जिस प्रकार प्यासे मनुष्यों के लिए जल का आधार होता है, उसी प्रकार सुखों की प्यास से पीड़ित मनुष्यों के लिए अहिंसा का आधार है।
४. जिस प्रकार भूखे मनुष्यों के लिए भोजन का आधार होता है, उसी प्रकार अध्यात्म विद्या की भूख से व्याकुल मनुष्य के लिए अहिंसा का आधार है।
५. जिस प्रकार समुद्र में डूबते हुए प्राणी के लिए जहाज या नौका का आधार होता है, उसी प्रकार संसार रूपी समुद्र में गोते खाते हुए भव्य प्राणियों के लिए अहिंसा का आधार है।
६. जिस प्रकार पशु को खूटे का और रोगी को औषधि का आधार होता है, उसी प्रकार भव्य प्राणियों को अहिंसा का आधार है।
७. जिस प्रकार वन में भूले हुए किसी पथिक को साथी का आधार होता है, उसी प्रकार संसार में कर्मों के वशीभूत होकर अनेक प्रकार की गतियों में भ्रमण करते हुए प्राणियों के लिए अहिंसा का आधार होता है।
भगवान महावीर की अहिंसा की मंगलमयता का उद्घोष इस प्रकार है :
धम्मो मंगल मुक्किंट, अहिंसा संजमोतवो।
देवावित नमंसन्नि, जस्सघम्ये, सयो मरहटो। अर्थात् अहिंसा, संयम और तप-ये विविध धर्म हैं और उत्कृष्ट मंगल हैं। जिस हृदय में धर्म निवास करता है, देवता भी उसका प्रणमन करता है । पातंजलि ऋषि ने साधना-पाद, सूत्र पैंतीस में अहिंसा के महत्त्व को इन शब्दों में स्वीकार किया
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