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सुनकर श्रेणिक और उनकी राजसभा के बड़े-बड़े विद्वानों को भी विस्मय की तरंगों में डूब जाना पड़ा था ।
अभय ने अपनी भूमिका समाप्त करने के पश्चात अपना मंतव्य पिता के समक्ष प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि उनका मन संसार से उचट गया है । अतः वह भगवान महावीर से दीक्षा लेकर मुनि-जीवन व्यतीत करेंगे । श्रेणिक अभय के विचारों को सुनकर स्तब्ध हो गए । वह नहीं चाहते थे कि अभय घर-द्वार, राज्य, धन-दौलत आदि छोड़कर मुनिपद पर प्रतिष्ठित हों। वह अभय को समझाने लगे, पर अभय अपने निश्चय पर अटल रहे। आखिर श्रेणिक करते तो क्या करते ? उन्होंने अभय को अनुमति दे दी । अभय ने भगवान महावीर की सेवा में उपस्थित होकर प्रव्रज्या ग्रहण की। इस प्रसन्नता में श्रेणिक ने बड़े-बड़े उत्सव किए थे और दीपक जलाए थे ।
अभय ने प्रव्रज्या ग्रहण करके स्वयं बहुत बड़ा तप किया । उन्होंने तप के द्वारा महान ज्ञान प्राप्त किया । कर्मों के बन्धन से छूटकर मोक्ष के अधिकारी बने। उन्होंने भारत में ही नहीं, विदेशों में भी भगवान महावीर के दिव्य ज्ञान का संदेश पहुंचाया। जैन धर्म के इतिहास में उनका नाम युग-युगों के लिए वन्दनीय बन गया है ।
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दूसरे राजकुमार थे मेघकुमार, जिन्होंने भगवान महावीर के दिव्य ज्ञान को ग्रहण करके अमर-पद प्राप्त किया था । मेघकुमार भी श्रेणिक बिम्बसार के ही पुत्र थे । वह बड़े विलासी थे । आमोद-प्रमोद ही उनके जीवन का व्रत था । उनके आठ
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