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लगा। भला वह महारानी का स्वर्णहार कैसे चुराकर ला सकता है ? राजभवन में तो दिन-रात सन्तरियों और सिपाहियों का पहरा रहता है। वह सन्तरियों और सिपाहियों की आंख बचाकर राजभवन में कैसे प्रवेश कर सकेगा? यदि कहीं वह पकड़ा गया तो अवश्य उसे शूली पर चढ़ा दिया जायगा।
विद्युत के प्राण कांप उठे। उसने वारवधू को बहुत समझाया कि वह उसके लिए अच्छे-से-अच्छे स्वर्णहार ला देगा, पर वह महारानी के स्वर्णहार की जिद छोड़ दे। पर वारवधू क्यों मानने लगी? उसने स्पष्ट कह दिया कि यदि वह महारानी का स्वर्णहार न लाकर देगा, तो फिर वह उससे अपना सम्बन्ध तोड़ लेगी।
विद्युत हर मूल्य पर वारवधू को प्रसन्न रखना चाहता था। आखिर वह प्राण हथेली पर रखकर राजभवन की ओर चल पड़ा। रात का समय था। चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ था। विद्युत बड़े साहस और कौशल के साथ राजभवन में प्रविष्ट हुआ। वह धीरे-धीरे महारानी के कमरे में घुसा और स्वर्णहार लेकर राजभवन से बाहर निकल गया। किन्तु जब वह हार लेकर वारवधू के पास जाने लगा तो शहर कोतवाल ने उसे देख लिया। शहर कोतवाल ने विद्युत को ललकारकर कहा-"खड़ा रह, तेरे हाथ में क्या है ?"
विद्युत ने सोचा कि कोतवाल ने महारानी का स्वर्णहार देख लिया है। वह भाग खड़ा हुआ। पर कोतवाल ने भी अपने सिपाहियों के साथ उसका पीछा किया। विद्युत भागताभागता श्मशान में पहुंचा और ध्यान में मग्न वारिषेण के पास