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श्रेणिक बिम्बसार के तीसरे पुत्र वारिषेण की कथा भी वड़ी रोमांचकारी है । वारिषेण थे तो राजकुमार, पर उनके हृदय में महान् गुण थे । वह गार्हस्थ्य जीवन में रहते हुए भी तपस्वियों और श्रावकों के-से आचार-विचार रखते थे । उनका ध्यान निरन्तर धर्म, ईश्वर और आत्मा की ओर ही लगा रहता था । वह लौकिक कार्यों से दूर, केवल चिन्तन में ही अपना समय व्यतीत किया करते थे ।
चतुर्दशी का दिन था । वारिषेण उपवास में थे । पवित्रता के साथ अपने समय को बिताने के उद्देश्य से वह श्मशान में जा पहुंचे, और एक स्थान पर बैठकर परमात्मा के ध्यान में लीन हो गए ।
उसी दिन रात में नगर में एक ऐसी घटना घटी, जिसके कारण वारिषेण के जीवन की धारा ही बदल गयी और वह घर-द्वार छोड़कर मुनि-पद पर प्रतिष्ठित हुए। बात यह हुई कि नगर में एक चोर रहता था। चोर का नाम विद्युत था । विद्युत की एक प्रेमिका थी - वारवधू । विद्युत उसे हृदय से प्रेम करता था। वह जो कुछ कहती, विद्युत प्राण देकर भी उसे पूर्ण करने का प्रयत्न किया करता था ।
संयोग की बात, उस दिन रात में जब विद्युत 'बारवधू' के घर गया, तो वह हाव-भाव प्रकट करती हुई बोल उठी"विद्युत, तुम यदि मुझसे प्रेम करते हो तो आज ही महारानी का स्वर्णहार चुराकर मेरे लिए ला दो ।"
महारानी का स्वर्णहार ! विद्युत के तन से पसीना छूटने
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