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की भी बात का प्रभाव न पड़ा। प्रभाव पड़ता भी तो कैसे? उनके मन में तो संसार के प्रति अरुचि पैदा हो गई थी। आखिर माता-पिता को अनुमति प्रदान करनी ही पड़ी। पर मेघकुमार की तो पत्नियां भी थीं। मेघकुमार अपनी पत्नियों से अनुमति लेने के लिए उनके पास गए। पर पत्नियां प्रव्रज्या ग्रहण करने के लिए क्यों अनुमति देने लगीं? अनुमति देने की कौन कहे, वे तो वज्र-शिला बनकर मेघकुमार के पथ में खड़ी हो गईं। मेधकुमार को अपने हाव-भाव और कटाक्षों से विरक्ति के पथ से विचलित करने का प्रयत्न करने लगीं। पर जिसे विरक्ति का स्वाद प्राप्त हो जाता है, उसे साधारण स्त्रियां तो क्या, देवांगनाएं भी पावन मार्ग से विचलित नहीं कर पातीं । मेघकुमार को भी कोई विचलित नहीं कर सका। वह किसी प्रकार भी पत्नियों के वश में न आए । आखिर पत्नियां भी क्या करती? उन्हें भी मेघकुमार की दृढ़ता से पराभूत होकर अनुमति देनी ही पड़ी। मेघकुमार फिर तो अति प्रसन्न होकर भगवान महावीर की सेवा में जा पहुंचे और दीक्षित हो गए। ___ मेघकुमार विहार में अन्य संतों के साथ भूमि पर सोते थे। सोते भी कहां थे? द्वार के पास । द्वार से होकर संतों का आवागमन लगा ही रहता था। इससे मेघकुमार को सोने में बड़ा कष्ट होता था। जब वह राजकुमार-पद पर प्रतिष्ठित थे, लोग उनका बड़ा आदर-सम्मान करते थे। पर आज वही अपने पैरों की धूलि उड़ाते हुए उनके पास से निकल जाते हैं। आदर-सम्मान प्रकट करने की कौन कहे, कोई उनकी ओर आंख