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साधना करने वाले भगवान महावीर अपने ढंग के अकेले ही हैं । तप और साधना काल में असाधारण वीरता और शौर्य प्रकट करने पर वह जगत में 'महावीर' और 'अतिवीर' के नाम से विख्यात हुए हैं।
भगवान महावीर के साधना-काल के जो वृत्तान्त जैनशास्त्रों में मिलते हैं, उन्हें पढ़कर हृदय कांप उठता है । भगवान महावीर ने साधना काल में रोमांचकारी उत्पीड़ाओं को तो सहन किया ही, उन्होंने स्वयं भी अपने शरीर को संयम की आग में तपाया । साढ़े बारह वर्षों के साधना - काल का अधिकांश उन्होंने बिना भोजन और जल के ही व्यतीत किया था । भगवान महावीर ने साढ़ े बारह वर्षों में कुल मिलाकर तीन सौ उन्तालीस दिन भोजन किया। शेष दिनों वह उपवास में रहे । यह बात तो और भी अधिक विस्मयकारिणी है कि उन्होंने एक अपवाद के अतिरिक्त कभी निद्रा नहीं ली । उन्हें जब नींद आने लगती तो वह चक्रमण क्रिया के द्वारा निद्रा को दूर कर दिया करते थे । वह सदा जागृत रहने का ही प्रयत्न किया करते थे ।
घोर यंत्रणाओं और पीड़ाओं पर विजय प्राप्त करने के साथ ही भगवान महावीर के हृदय में दिव्य-ज्ञान का सूर्य प्रकट हुआ । वह सर्वज्ञ और समदर्शी पद पर प्रतिष्ठित हुए । उन्होंने इस महान पथ पर प्रतिष्ठित होकर विश्व को जो अमृत पिलाया, उससे विश्व की प्यास मिट गई, मानव समाज की मनोव्यथा दूर हो गई ।
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