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उपस्थित किया। श्लोक में त्रिकाल कौन-से हैं, छह द्रव्य क्या हैं, पंचास्तिकाय किसे कहते हैं, तत्त्वों से क्या तात्पर्य है, आत्मा क्या है, मोक्ष किसे कहते हैं, आदि-आदि बातों का चित्रण प्रश्न-वाचक रूप में किया गया था। इन्द्रभूति तो श्लोक में निहित प्रश्नों को जानकर विस्मित हो उठे, क्योंकि आज तक वह यज्ञ ही कराया करते थे। इन प्रश्नों की ओर तो कभी उनका ध्यान ही नहीं गया था।
इन्द्रभूति स्तब्ध होकर बोल उठे-"क्या इन प्रश्नों का कोई उत्तर दे सकता है ?"
इन्द्ररूपी बटुक ने उत्तर दिया- "हां, दे सकते हैं और वह हमारे गुरु हैं।"
इन्द्रभूति पुनः बोल उठे- "यदि तुम्हारे गुरु इन प्रश्नों का उत्तर दे देंगे तो मैं सहर्ष उनका शिष्यत्व स्वीकार कर लूंगा।"
इन्द्र यही तो चाहते थे। वह इन्द्रभूति के साथ भगवान महावीर की सेवा में उपस्थित हुए। उन्होंने भगवान के समक्ष भी उस श्लोक के द्वारा उक्त प्रश्नों को उपस्थित किया। सर्वज्ञ भगवान बिना कुछ प्रकट किए हुए ही सब कुछ समझ गए। वह समझ गए कि यह बटुक कोन है, और इन्द्रभूति को क्यों मेरे पास लाए हैं ? फिर तो भगवान महावीर श्लोक में निहित एक-एक प्रश्न का उत्तर देने लगे । उन्होंने सारे प्रश्नों के रहस्य खोलकर इन्द्रभूति के सामने उपस्थित कर दिए। इन्द्रभूति ने भगवान महावीर के उत्तरों को सुनकर बहुत-सी शंकाएं भी उपस्थित की। भगवान महावीर ने इन्द्रभूति की शंकाओं का