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इन्द्रभूति का इनमें विशेष स्थान था। भगवान महावीर से शास्त्रार्थ में पराभूत होने पर इन्होंने उनका शिष्यत्व ग्रहण किया था।
भगवान महावीर के अगणित गृहस्थ शिष्य थे। पर उनमें मगधाधिपति श्रेणिक, वैशालीपति चेटक, अवन्तिपति चण्ड प्रद्योत आदि का प्रमुख स्थान था। आनन्द, कामदेव आदि लाखों श्रावक थे, जिनमें शकटाल जैसे कुमार भी थे। वीरांगक, वीरयक्ष, संजय, एणेयक, सेम, शिव, उदयन और शंख आदि नृपतियों ने भगवान से प्रव्रज्या ग्रहण की थी। राजकुमारों और राजकुमारियों ने भी भगवान महावीर के उपदेशों से प्रभावित होकर उनका शिष्यत्व स्वीकार किया था। राजकुमारों में अभयकुमार, मेघकुमार आदि का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसी प्रकार राजकुमारियों में चन्दनबाला, देवानन्दा आदि का नाम उल्लेखनीय है। यों भगवान के साध्वी-संघ में सम्मिलित होने वाली स्त्रियों की संख्या छत्तीस सहस्र थी।
भगवान महावीर के इन संत, गृहस्थ और नृपति स्त्रीपुरुष शिष्यों में किसी-किसी के साथ ऐसी कहानियां जुड़ी हैं, जिनसे भगवान की प्रभावमयता और उनके उत्कट ज्ञान पर अधिक प्रकाश पड़ता है।
भगवान महावीर ने सर्वप्रथम मगध में अपनी अहिंसा का विजयकेतु उड़ाया । पूर्ण सर्वज्ञ होने के पश्चात् वह मगध में आए
और अपने अहिंसा-मन्त्र से लोगों को दीक्षित करने लगे। उन दिनों सारे मगध में बलि-प्रथा का प्रचलन था। लोगों में यह