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मनुष्यों की श्रद्धा और विश्वास के पात्र बन गए । श्रद्धा और विश्वास के पात्र इसलिए बन गये कि उन्होंने मनुष्यों को दुःखों से मुक्ति दिलाई, रोगों से मुक्ति दिलाई, और मुक्ति दिलाई उन कदाचारों से, जो मनुष्य के सुख और शान्ति के युगों से घोर शत्रु बने हुए थे ।
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बड़े ही दुर्दमनीय शत्रु हैं ये मनुष्य के ! बड़े-बड़े मनुष्यशत्रुओं को तो सभी योद्धा पराजित कर देते हैं, पर दु:ख, रोग, कदाचार और काम सरीखे दुर्दमनीय शत्रुओं को भगवान महावीर जैसे विरले महामानव ही पराजित करते हैं । निम्न कहानी में भी इसी बात का प्रतिपादन किया गया है :
एक नृपति था । उसने अपने समस्त शत्रुओं को पराभूत कर दिया, सब के देशों पर विजय - केतु गाड़ दिया । किन्तु फिर भी देशों पर विजय स्थापित करने की उसकी लालसा न मिटी । एक दिन उसने अपने वयोवृद्ध मन्त्री से कहा- "मन्त्री जी, अब तो धरती पर कोई शत्रु पराजित करने के लिए रहा नहीं, अतः अब मैं धरती के ऊपर ग्रहों पर आक्रमण करूंगा ।"
वयोवृद्ध मन्त्री बुद्धिमान थे, शान्तिप्रिय थे, वह राजा की युद्ध - लिप्सा से आकुल हो उठे । अतः सोचकर बोले – “महाराज, ग्रहों पर आक्रमण करने की आवश्यकता नहीं ।"
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राजा ने विस्मित दृष्टि से वयोवृद्ध मन्त्री की ओर देखा, " तो इसका अर्थ यह हुआ कि अभी धरती पर ही बहुत से शत्रु पराजित करने के लिए शेष हैं ?"
वयोवृद्ध मन्त्री ने उत्तर दिया- 'हां महाराज, अभी धरती पर ही आपके बहुत से ऐसे शत्रु शेष हैं जो पराजित नहीं
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