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यह कोई देवी या अप्सरा है। वह चन्दना को अपने सरदार के पास ले गया।
चन्दना को देखते ही भील सरदार के मन में वासना का विष घुल गया। वह उसे अपनी स्त्री बनाने के मन्सूबे बांधने लगा। पर चन्दना क्यों मानने लगी? वह तो एक शीलवती, सदाचारिणी स्त्रीथी। पर भील सरदार भी यों ही उसे छोड़ने वाला नहीं था। वह उसे डराने-धमकाने लगा, भांति-भांति की यंत्रणाएं देने लगा, फिर भी चन्दना उसके वश में न आयी । वह अपने पवित्र विचारों पर दृढ़ रही।
उन दिनों दास-प्रथा का प्रचलन था। स्त्री-पुरुष दासदासियों के रूप में उसी प्रकार बेचे जाते थे, जिस प्रकार पशु बेचे जाते हैं । चन्दना जब किसी प्रकार भील सरदार के वश में न आयी तो वह चन्दना को लेकर कौशाम्बी नगर में पहुंचा और चौराहे पर खड़ा होकर उसको बोली लगाने लगा। .
भील सरदार बोली लगा रहा था कि दूसरी ओर से नगरसेठ उधर से निकला। उसने चन्दना को देखा । वह चन्दना का मूल्य चुकाकर उसे अपने घर ले गया और धर्म-पुत्री की भांति उसका पालन-पोषण करने लगा।
यद्यपि नगरसेठ का हृदय पवित्र था, वह चन्दना को अपनी धर्म-पुत्री समझता था, पर फिर भी चन्दना के प्रति नगरसेठ के स्नेह को देखकर उसको स्त्री के मन में सन्देह पैदा हो उठा । उस सन्देह का कारण था चन्दना का रूप-सौन्दर्य । वह मन-ही-मन सोचने लगी, कहीं नगरसेठ चन्दना के रूप-जाल में फंसकर उसे अपनी पत्नी न बना ले। अतः नगरसेठ की पत्नी
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