Book Title: Antim Tirthankar Mahavira
Author(s): Shakun Prakashan Delhi
Publisher: Shakun Prakashan Delhi

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Page 67
________________ कुमार उन्हें छोड़कर जा रहे हैं और उल्लास इसलिए कि उनके प्राणप्रिय राजकुमार उन विषय-वासनाओं से युद्ध करने के लिए जा रहे थे, जिन्हें अब तक लोग अजेय - अविजित समझते थे । एक ओर लोगों के नेत्रों में आंसू थे, तो दूसरी ओर उनके कंठों से जयनाद भी निकल रहा था । हर्ष और विषाद के समागम का अद्भुत दृश्य उपस्थित था । यहां भी भगवान महावीर ने अद्भुत वीरता शूरता के ही चिह्न बनाए । प्रायः देखा जाता है कि जब लोग संन्यास लेने के लिए घर-द्वार छोड़ते हैं तब या तो चुपचाप बिना किसी को सूचित किए चले जाते हैं, या निशा के सन्नाटे में जब परिवार के सभी लोग गाढ़ी निद्रा में सांते रहते हैं, घर का परित्याग करते हैं । महात्मा बुद्ध जैसे महान् आत्म- दृष्टा ने भी रात के सन्नाटे में ही अपने घर और बन्धु बान्धवों का परित्याग किया था। पर इसके प्रतिकूल भगवान महावीर ने दिन में सबके सामने बड़े समारोह के साथ मोह-ममता का परित्याग किया। उनके गृह त्याग से पूर्व एक बहुत बड़ा समारोह हुआ। समारोह में परिजन, पुरजन और राज्य जन एकत्र हुए। सबने भगवान महावीर को विदा दी। सबकी आंखों में उनके लिए उत्कट मोह था, और सबके हृदयों में उनके लिए प्रबल आकर्षण था । पर किसी के नेत्रों के आंसू. किसी के प्राण का मोह, और किसी के हृदय का आकर्षण उनके उठे हुए चरणों को बांधने में सफल न हो सका । धन्य थे उनके वे चरण ! उनके उन चरणों में कितनी गति थी, कितनी संचरण - शक्ति थी ! इसीलिए तो लोग कहते हैं कि भगवान 'महावीर' ही नहीं, 'अति वीर' थे। ६५

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