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वर्षों के लम्बे समय में कितने स्थानों में चातुर्मास व्यतीत किया-यह तो ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता, फिर भी जैनशास्त्रों में इस प्रकार के कुछ विशिष्ट स्थानों के नामों की तालिका अवश्य मिलती है । जैन-शास्त्रों और विद्वानों के मतानुसार भगवान महावीर ने प्रथम चातुर्मास अस्थि-ग्राम में बिताया था। उसके पश्चात् का चातुर्मास नालन्दा में व्यतीत हुआ था। चम्पापुरी, पृष्टचम्पा, राजग्रह, कौशाम्बी, लाढ़, कुमार-ग्राम और उज्जैन आदि स्थानों में भी उन्होंने चातुर्मास व्यतीत किये थे।
भगवान महावीर के चातुर्मासों के स्थानों के साथ बड़ी ही प्रेरक कहानियां जड़ी हुई हैं। उन कहानियों से एक ओर तत्कालीन समाज की कायरता, कदाचार और पापाचार का चित्र अंकित होता है तो दूसरी ओर भगवान महावीर के अदम्य साहस, त्याग, धैर्य, सहनशीलता, दया और क्षमा का चित्र वनता है, जिसके फलस्वरूप वह जगत् में 'महावीर' और 'अतिवीर' को गौरवमयी उपाधियों से विभूषित हुए। उचित ही होगा, यहां उन प्राण-प्रेरक कथाओं में से कुछ का चित्रण किया जाए, क्योंकि उन कथाओं का चित्रण किये बिना भगवान महावीर के उस अजेय पौरुष का चित्र साकार न होगा, जिसके लिए वह जन-जन में पूजे जाते हैं।
भगवान महावीर उन दिनों लाढ़ में थे। लाढ़ बंगाल के दिनाजपुर जिले में बाणगढ़ के समीप है। उन दिनों लाढ़ में अनार्यों का आधिपत्य था। वे बड़े हिंसक, क्रूर और पिशाचवृति के थे। भगवान महावीर जब अपना चातुर्मास व्यतीत