Book Title: Antim Tirthankar Mahavira
Author(s): Shakun Prakashan Delhi
Publisher: Shakun Prakashan Delhi

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Page 31
________________ महानता अंतर में छिपाकर अपने आचरणों के द्वारा पवित्र सोपानों का निर्माण करते रहे । वह जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में से होकर निकले। उन्होंने जीवन के जिस किसी क्षेत्र में प्रवेश किया, उसमें अपने आचरण और व्यवहारों का मान-बिन्दु स्थापित किया। उन्होंने स्वयं लोक-कल्याण के लिए कष्ट सहे, और अपने अनुगामियों को भी लोक-कल्याण के लिए कष्ट सहने की सलाह दी। उनके मार्ग में बड़ी-बड़ी बाधाएं आयीं, बड़े-बड़े विघ्न आए। दानवों ने उन्हें आगे बढ़ने से रोका, पर वह सबको पराजित करके निरन्तर आगे बढ़ते गए, और इतना आगे बढ़ गए कि भगवान बन गए । सब में रमते हुए, सबसे ऊपर पहुंचने को उनकी महानता का वन्दन करते हुए एक जैनाचार्य ने ठीक ही लिखा है- 'प्रभो, दूसरे दार्शनिक आपके चरण-कमल में इन्द्र के घुटने टेकने की बात भले ही न मानें, अथवा अपने दर्शन-नायक को भी पूज्य बताएं, किन्तु आपकी वाणी में जो यथार्थ रस है, उसे न कोई ढांप सकता है, और न कोई उसकी बराबरी कर सकता है।" ___ भगवान महावीर के जीवन का एक महान लक्ष्य था। वह जीवन में उठना चाहते थे। वह आत्मा थे, परमात्मा हो जाना चाहते थे। जीवन के प्रथम चरण से ही वह अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होने लगे। अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उन्होंने समता, सहिष्णुता, अभय, अहिंसा और अनासक्ति, आदि गुणों को संबल के रूप में ग्रहण किया। वह अपने इन्हीं संबलों-साधनों की शक्ति से विघ्न-बाधाओं से संघर्ष करते हुए आगे बढ़े और अपने लक्ष्य को प्राप्त करके कोटि-कोटि मनुष्यों २६

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