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शब्दों में भगवान महावीर के परोपकारी जीवन का चित्र खींच रहा था। दरबार में एकत्रित देवता बड़ी तन्मयता से उसकी बातें सुन रहे थे। पर उनमें एक ऐसा भी देवता था, जिसके मन में ईर्ष्या की अग्नि जल उठी। वह अपने को रोक न सका। आवेग के स्वर में बोल उठा-"मैं अभी जाता हूं!"
किसी दूसरे देवता ने प्रश्न किया-"पर कहां जाते हो?"
ईर्ष्यालु देवता ने उत्तर दिया--"महावीर वर्द्धमान की परीक्षा लेने के लिए।" और वह चल पड़ा।
भगवान महावीर एक वाटिका में अपने मित्रों के साथ आंख-मिचौनी का खेल रहे थे। हठात् ईर्ष्यालु देव एक विषधर नाग के रूप में प्रकट हो उठा। वह देखने में काले रंग का, वड़ा भयानक था। वह प्रकट होते ही फण फैलाकर फुकारता हुआ भगवान महावीर की ओर झपट पड़ा। भगवान महावीर के सखा-गण भयभीत हो उठे, पर भगवान महावीर रंचमात्र भी विचलित न हुए। वह हिमालय की भांति अडिग खड़े रहे। आखिर उनकी धैर्य-शक्ति ने नाग को पराजित कर दिया। वह बारम्बार झुककर भगवान महावीर का वन्दन करने लगा। __ इसी प्रकार की और भी कई कहानियां उनके बाल-जीवन की मिलती हैं, जो उनकी अलौकिकता को प्रकट करती हैं।
एक विद्वान् लेखक ने भगवान महावीर के बाल-जीवन का चित्रण इस प्रकार किया है-'उनके बाल्यकाल की अनेक कथाएं जैन-ग्रन्थों में उल्लिखित हैं, जिनसे प्रतीत होता है कि वर्द्धमान होनहार बिरवान के होत चिकने पात' की उक्ति के अनुसार बचपन से ही अतीव बुद्धिमान, विशिष्ट ज्ञानवान, धीर, वीर और साहसी थे।'