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अन्य विद्वानों को भी अवाक् हो जाना पड़ा। लोग यह सोचने लगे कि त्रिशलादेवी का गर्भस्थ बालक कोई सामान्य बालक नहीं, वरन् वह कोई दिव्य-ज्ञान-सम्पन्न महापुरुष है।
भगवान महावीर जब गर्भ में आए, उनकी मां को विचित्रविचित्र स्वप्न भी हुआ करते थे। स्वप्नों के साथ-ही-साथ उनके मंगल-सूचक अंगों में स्फुरण भी हुआ करता था। शकुन भी बड़े आनन्दसूचक हुआ करते थे। एक दिन रात में प्रभात होने के पूर्व उन्होंने क्रम से सोलह स्वप्न देखे । प्रत्येक स्वप्न में उन्हें पृथक्-पृथक् वस्तुएं दिखाई पड़ी। इस प्रकार उन्होंने अपने सोलह स्वप्नों में सोलह वस्तुएं देखीं। उन सोलह वस्तुओं के नाम इस प्रकार हैं :
१. चार दांतों वाला ऊंचा हाथी । २. श्वेत रंग का ऊंचे कंधे वाला बैल । ३. उछलता हुआ सिंह । ४. दो भव्य मदार पुष्पों की माला। ५. उदस्त चन्द्रमा। ६. सूर्य-दर्शन । ७. दो मछलियां। ८. सोने के दो कलश। ६. तालाब। १०. समुद्र । ११. लक्ष्मी-दर्शन । १२. ऊंचा सिंहासन। १३. स्वर्ण-विमान । १४. नाग-भवन । १५. रत्नभण्डार । १६. धुएं से रहित अग्नि ।
त्रिशलादेवी ने अपने इन स्वप्नों की चर्चा महाराज सिद्धार्थ से की। महाराज सिद्धार्थ ने स्वप्नों में उनके द्वारा देखी गई वस्तुओं के नाम सुनकर, उनके फलों का निरूपण इस प्रकार किया :
१-'चार दांतों वाला ऊंचा हाथी' यह प्रकट करता है कि गर्भस्थ बालक तीर्थकर होगा।
२-'श्वेत रंग का ऊंचे कंधे वाला बैल' यह सूचित करता