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जब दिव्य-ज्योति धरा पर उतरी
धरती पर जब किसी दिव्य-ज्योति का आविर्भाव होने को होता है, तो असमय में ही धरती पर वसन्त छा जाता है। सूखे पेड़-पौधे हरीतिमा की चादर से ढंक जाते हैं। नदियों-नालों में जल उफान लेने लगता है। वृक्षों को गोद फूलों से भर जाती है और खेतों में अनाज की बालों से लदे हुए पौधे झूमने लगते हैं। पक्षियों का कंठ खुल जाता है। जन-जन के हृदय में उल्लास फूट पड़ता है। देवी घटनाएं घटने लगती हैं। पवित्र-आचरणसम्पन्न मनुष्यों को मंगलकारी, विचित्र-विचित्र स्वप्न होने लगते हैं । घरती और घरती के लोग उस दिव्य-ज्योति के आगमन की प्रसन्नता में स्वर्ग और स्वर्ग के देवताओं से होड़ लगाने लगते हैं।
भगवान महावीर के प्राकट्य के समय यह सब कुछ हुआ। उनके प्राकट्य के पूर्व से ही कुण्डलपुर के आस-पास की धरती उल्लसित हो उठी। ऋतुएं यथोचित समय पर आने-जाने लगीं।