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अनेकान्त
और एक मधि के कथनो का सार लेकर बनाया है। नेमिचन्द्र ने जो वंशावली दी है उसमे वे अपना वशक्रम
इन्द्रनदि ने स्वरचित सहिता में एक जगह हस्तिमल्ल १० पीढी पूर्व में होने वाले लोकपाल द्विज से शुरू करते है । का उल्लेख किया। (देखो उसका ३रा परिच्छेद) किन्तु और ब्रह्मसूरि अपनी बंशावली 'अपने से ४ पीढी पूर्व मे जैनसिद्धातभारकर भाग ५ किरण १ मे हस्तिमल्लकृत होने वाले हस्तिमल्ल से शुरू करते हैं । इसका अर्थ यह प्रतिष्ठाविधान की प्रशस्ति छपी है उममे हस्तिमल्ल ने भी हा कि नेमिचंद्र ने हस्तिमल्ल से करीब एक सौ वर्ष पूर्व इन्द्रनदी का उल्लेख किया है। इससे हस्तिमल्ल और इन्द्र- मे अपनी वशावली शरू की है। इस प्रकार यह अन्तर नंदी दोनो ममकालिक सिद्ध होते है ।
रफा होकर नेमिचन्द्र का समय विक्रम की १५वी सदी का फलितार्थ यह हुआ कि हम्तिमल्ल, इन्द्र नदी और पूर्वाद्धही ठीक रहता है और यही समय ब्रह्मसूरि का भी है एकमधि ये अतिम सब प्राशाधर के समय से लेकर वि०
नेमिचन्द्रने प्रशस्ति मे लोकपाल हस्तिमल्ल के कुल सं०१३७६ के मध्य में हुये है।
मे हुमा लिखा है। इसका अर्थ यह नहीं समझना कि उक्त प्रतिष्ठातिलक के कर्ता नेमिचन्द्र कब हुए ? अब
लोकपाल हस्तिमल्ल के बाद हुआ है। चूकि हस्तिमल्ल हम इस पर विचार करते है । इन नेमिचन्द्र ने जो अपनी
एक विख्यात विद्वान हुये थे इसलिए नेमिचंद्र ने हस्तिमल्ल वशावली दी है उसके अनुमार ब्रह्ममरि रिस्ते में इनके
के पूर्वज लोकपाल आदि को हस्तिमल्ल के अन्वय में होना मामा लगने थे । नेमिचन्द्र ने हस्तिमल्ल के कुल में होने
लिख दिया है। क्योकि जिस वश मे कोई प्रसिद्ध पुरुष वाले कोछपाल द्विज से लेकर अपने पिता देवेन्द्र तक करीब
हो जाता है तो उसकी आगे पीछे पीढिये उसी के नाम के ६ पीढी का उल्लेख किया है । इन पीढ़ियों का समय यदि दोसौ वर्ष भी मानलिया जाय तो नेमिचन्द्र का समय विक्रम
वन्श से बोली जाया करती है। यहा इतना जरूर समझ की १६वी शताब्दिका पर्वाद्ध बनता है। किन्त नेमिचन्द्रके
लेना कि नेमिचंद्र और ब्रह्मसूरि दोनों समान वंश में होते समय में ही उनके मामा ब्रह्ममूरि हए है उन्होंने भी
हुये भी जिस सतान परंपरा मे नेमिचद्र हुये है उस सतान प्रतिष्ठाग्रथ बनाया है उसमे वे लिखते है कि
परंपरा में न हस्तिमल्ल हुये और न ब्रह्मसूरि ही। अर्थात्
नेमिचद्र और ब्रह्मसूरि दोनो के परदादो के परदादे आदि “पाडय देश में गुडिपतन नगर के गजा पाडव नरेन्द्र
जुदे-जुदे थे। थे । गोविद भट्ट यही के रहने वाले थे। उनके हस्तिमल्ल
"बाबू छोटेलालजी स्मृति प्रथ" मे डा० नेमिचद्र जी को आदि लेकर छह पूत्र थे । हस्तिमल्ल के पुत्र का नाम
शास्त्री पारा वालो का "भट्टारकयुगीन जैनमस्कृत साहित्य पार्श्वपडित था । वह अपने बन्धनो के साथ होयसल देश की प्रतियो" नामक लेख प्रकाशित हया है । उसमे लेखक मे जाकर रहने लगा था जिमकी राजधानी छत्रत्रयपुरी थी। नेन मालम इन नेमिचद्रका समय (पृ. ११८) विक्रम पावपडित के चन्द्रप, चन्द्र नाथ, और वैजय्य नामक तीन की१३वी सदी किस प्राधार से लिखा है? आपने कुछ पुत्र थे। उनमें में चद्रनाथ अपने परिवार के साथ हेमाचल और भी ग्रथकारों का समय यद्वा तद्वा लिम्व दिया है। में जा बमा और दो भाई अन्य स्थानों को चले गए। चद्रप ।
जैसे कि आपने भैरवपद्मावतीकल्प आदि मंत्रशास्त्रो के के पूत्र विजयेन्द्र प्रा और विजयन्द्रक ब्रह्मसुरि।"
का मल्लिषण का समय १२वी शती लिखा है। यह नुसार हास्तमल्ल उनके पितामहक बिल्कुल गलत है। इन मल्लिषेण ने महापुराण की रचना पितामह थे । यदि एक एक पीठीके २५-२५ वर्ष गिन लिए वि० सं०-११०४ में पूर्ण की है। अत ये ११वी सदी के जाये तो हास्तमल्ल उनसे लगभग सौ वर्ष पहले के थे। अत व १२वी सदी के प्रारम्भ में हुये है। इसी तरह इससे नेमिचद्र और ब्रह्मसूरि का समय विक्रम की १५वी आपने वाग्भट्टालकार के टीकाकार वादिराज को तोडानगर शताब्दि का पूर्वार्ट सिद्ध होता है । ऊपर हम १६वी शदी के राजा मानसिह का मत्री और उनका समय वि० स०का पूर्वाद्ध बता पाये है । दोनोमे एकसौ वर्षका अन्तर है। १४२६ लिखा है। यह भी ठीक नहीं है । उक्त वादिराज यह अन्तर इस तरह दूर किया जा सकता है कि
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