Book Title: Anand Pravachan Part 10
Author(s): Anand Rushi, Shreechand Surana
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 17
________________ ४५. सुसाधु होते तत्त्व-परायण १ सुसाधु कौन, कुसाधु कौन ? ६०, नकली साधु से असली बनने में कारण : तत्त्वज्ञान की किरण ६१, साधुओं के लिए आदर्श प्रेरक, सच्चा साधु २, कुसाधु ( पाप श्रमण ) के लक्षण ९३, तत्त्व क्या ? उसका ज्ञान क्या ? तत्त्वपरायणता क्या ? ६५, तत्त्वज्ञान : सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान ९७, तत्त्वज्ञान की उत्पत्ति ६८, साधुजीवन का आन्तरिक सामर्थ्य : तत्त्वज्ञान-परायणता ६६, तत्त्व-परायणता केवल तत्त्व जानने से नहीं १००, केवल शब्दों को पकड़ने वाले भी तत्त्व तक नहीं पहुँच पाते १०२, धर्माचरण के पुरुषार्थ के साथ तत्त्वज्ञान न हो तो ? १०३, पाप का प्रधान कारण - तत्त्वज्ञान का अभाव १०३, साधक में तत्त्वज्ञान न हो तो सारे सुख, दुःख में बदल जाते हैं १०५, तत्त्वज्ञान के अभाव में साधक की भ्रान्तियाँ १०७, साधु आगम-चक्षु होता है १०६ । ४६. सुसाधु होते तत्त्व-परायण - २ तत्त्वज्ञान-परायण साधु के लिए बन्धन भी अबन्धन १११, आज के तत्त्वज्ञान शून्य व्यक्तियों की प्रवृत्ति - विभिन्न दृष्टान्त ११४, तत्त्वनिष्ठ साधनाशील को विषयों से विरक्ति एवं अरुचि ११६, तत्त्वज्ञाननिष्ठ सुख को अपने भीतर खोजता है ११८, तत्त्वज्ञाननिष्ठ दुष्परि स्थितियों से भागता नहीं १२०, तत्त्वज्ञानी को कहीं न कहीं से सही मार्ग मिल जाता है १२३, तत्त्वज्ञानी अविष्ट प्रवृत्ति में फँसा नहीं रहता १२४, तत्त्वज्ञानी अन्धविश्वास में भी नहीं फँसता १२५, तत्त्व परायण सुसाधु सत्य को बहुत शीघ्र स्वीकारता है १२६, तत्त्वज्ञानी आन्तरिक एवं शाश्वत सौन्दर्य को देखता है १२७, तत्त्वज्ञानी सुसाधु का जीवन परमार्थी होता है १२८, तत्त्वनिष्ठ साधु दूसरों को भी तत्त्व समझाते हैं १३०, सच्चे तत्त्वनिष्ठ सुसाधु की पहचान १३२ । Jain Education International ६०-११० ४७. उग्रतप की शोभा : क्षान्ति– १ तप क्या है, क्या नहीं ? १३४, संस्कार शोधन : तप १३५, तप का लक्षण १३५, तप का उद्देश्य १३७, सकाम और निष्काम तप १३६, उग्रतप दुःख का कारण - कितना है, कितना नहीं १३६, उग्रतप से शरीरादि को साधा जाय १४०, सेठ और उसकी पुत्रवधू का दृष्टान्त १४१, आत्मसमाधि से रहित उग्रतप व्यर्थं १४४, उग्रतप रूपी तलवार रक्षक भी, संहारक भी १४६, उग्रतप ज्ञानगंगा के साथ चमकता है १४८, तप, ज्ञान और जप १४८ उग्रतप का महत्व और लाभ १५०, उग्रतप के साथ सहिष्णुता हो, तभी महाशक्ति १५०, भक्त ध्रुव का दृष्टान्त १५१ । For Personal & Private Use Only १३ १११-१३३ १३४-१५३ www.jainelibrary.org

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