________________
अनुक्रम
पृष्ठ
५८
७८
१०१
१२५
१५०
१७१
विषय १. जीवन की परख २. लोभी होते अर्थ-परायण ३. होते मूढ नर काम-परायण ४. बुधजन होते क्षान्ति-परायण ५. धर्म नियन्त्रित अर्थ और काम ६. पण्डित रहते विरोध से दूर ७. सज्जन होते समय-पारखी ८. सज्जनों का सिद्धान्तनिष्ठ जीवन ६. साधु-जीवन : समतायोगी १०. सत्त्ववान् होते दृढ़धर्मी । ११. बान्धव वे जो विपदा में साथी १२. क्रोधीजन सुख नहीं पाते १३. अभिमानी पछताते रहते १४. कपटी होते पर के दास १५. पाते नरक लुब्ध-लालची १६. क्रोध से बढ़कर विष नहीं १७. अहिंसा : अमृत की सरिता १८. शत्रु बड़ा है अभिमान १६. अप्रमाद : हितैषी मित्र २०. माया भय की खान
१६०
२१३
२२६
२४७
२७०
२६०
३१२
३५०
३७३
३१२
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org