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अकबर की धार्मिळ नीति
उलेमा के परामर्शको भी वह मानता था । किन्तु राज्य पर उलेमा के प्रभाव को वह स्वीकार नहीं करता था। फीरोज की मांति मुस्लिम विथवावां की छड़कियों की शादी के लिये वह दहेज का प्रवन्ध किया करता था । अपने की के लिये उसमें इतना उत्साह था कि मथुरा के मंदिर तुङवाने और उनके स्थान पर सराय तथा मस्जिद बनवाने की उसने बाशा दे दी थी । हिन्दुओं को यमुना के पार्टी पर सान करने की बाशा नहीं. थी । वास्तव में इसने हिन्दू की को कुच्छन बार स्लाम का उत्थान करने के लिये हर संभव प्रयत्न क्यिा उसकी बाधीनता में दिल्ली सल्तनत इस्लाम के प्रचार का उतना ही सक्रिय साथन वन गई जितना कि फीरोज तुगलक के समय में थी । स लिये हम कह सकते है कि उसकी धार्मिक नीति कटटर इस्लामी थी । ड्राहीम की मी इस्लाम में पूर्ण निष्ठा थी। किन्तु उसने सिकन्दर की पाति हिन्दुओं के प्रति घृणात्मक व्यवहार नहीं किया । वास्तविकता तो यह पी किवान्तरिक विद्रोह बार वाल आमाँ के कारण वह इस बार अपना ध्यान ही नहीं दे सका ।
इस प्रकार हम कह सकते है कि अकबर के पूर्व दिल्ली सुल्तानों की धार्मिक नीति स्लाम धर्म प्रधान थी । प्राय: प्रत्येक सुल्तान ने इस्लाम के संवर्धन वोर विकास के हर सम्भव प्रयास किये वीर हिन्दुओं पर कनेक प्रकार के अत्याचार किये । इस काल में शासन में उलेमा वर्ग बड़ा ही प्रभाव शाली था । कुछ शासकों के समय तो उलेमा ही राज्य के प्रधान बन गये जिन्होने सम्पूर्ण राज्य पर अपना प्रभाव स्थापित कर लिया ।
अधिकांशत: प्रत्येक शासक की नीति इस्लाम को ध्यान में रख कर ही निर्धारित होती थी और इस ख्येि यदि इस काल को की राज्य कहा जाय तो कोई अत्युक्ति नहीं ।
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