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अकब्र की धार्मिक नीति
कारण अकबर ने इन पादरियों के प्रति न केवल अता और शिष्य भाव का की प्रदर्शन क्यिा अपितु इसाइयों के ईसामसीह और मैरी आदि की मूर्तियाँ के प्रति भी यथेष्ट श्रद्धा प्रकट की । इन पादरियों के गिरवाओं में । भी अकबर प्राय : आया जाया करता था । पादरियों की प्रार्थना के समय कुछ दरबारियों के साथ गिरजा घर में जाकर मेरी तथा ईसामसीह के चित्रों को साष्टांग प्रणाम करता था । अकबर ने पादरियों को स्क अस्पताल स्थापित करने की अनुमति दे दी थी । उन अपने धार्मिक वीर सांस्कृतिक संस्कार व समारोह मनाने की मी स्वतंत्रता थी । किसी सा! के देहावसान के बाद उसके श्व को ईसाई धर्म की परम्परानुसार कार्या और मोमबत्तियाँ सहित, लस में नगर में से ले जाने की अनुमति दे दी थी । जैतहट पादरियों ने मुग, दरबार में अपना एक कालेज अथवा मठ मी स्थापित कर लिया था । इन ईसाई पादरियों को उच्च श्रेणी के अतिथी मानते हुए अकबर ने इन्हें प्रत्येक प्रकार की सुख सुविधाएँ ही प्रदान ! नही की बल्कि इनके दाने जाने तथा अन्य प्रकार के सारे खचों को भी स्वयम उठाया ।
अकबर के ऐसे आतिथयपूर्ण व्यवहार तथा ईसाई की के प्रति - इतनी जिज्ञासा देव कर ईसाई मिशनरी यह समझने लगे कि वह ईसाई की। स्वीकार करने की ओर अग्रसर हो रहा है और इसी धारणा के आधार पर इन लोगों ने गोवा और लिसवन में उप उच्च अधिकारियों को अतिरंजित समाचार मेजने एरु कर दिये । जैसे-सम्राट ने सारे साम्राज्य में से इस्लाम धर्म की समाप्ति कर दी है और मसजिदों को अस्तबलों में परिवर्तित कर दिया है । जब कि वास्तविकता यह थी कि तर्क प्रिय होने के कारग झाला किसी ऐसे भी में विश्वास ही नही कर सकता था, जो कि इल्हाम तथा सत्ता पर आधारित था।
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