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मकर की धार्मिक नीति
ने मुता विवाग को कानूनी व वैध माना तथा बदायूनी नै स्वयम् एस । विवार के लिये अपनी अनुमति दे दी थी । ३० इसके बाद यदि विवाह के प्रश्न पर मतमेव हर तो इसके लिये अकबर को दोगी नहीं ठहराया जा सकता। ८. अकबर ने हाथी, ऊंच, रीक, बीते, सूबर, कुत्ते, मैसे, - खच्चर तथा कई प्रकार के पक्षी पाल रखे थे। इससे दीनालाही या इस्लाम का कोई सम्बन्ध नही वाता । स्वयम बदानी ने भी स्वीकार किया है कि बीते के मांस का उपयोग मुसलमान मध्य एशिया में करते - 1 थे । ३१ सन १५६८-६ में चित्तौड़ के पैरे के समय अर्थात दीनलाही प्रसारण के कई वर्ग पूर्व अकबर की सेना में तुर्क, राजपूत वादि विभिन्न जातियों के लोग थे । कां अकबर ने तुकों के लिये चीते के मांस का बोर राजपूर्ता के लिये सूबर के मांस का उपयोग करने की अनुमति दे दी थी, पर सभी मुसलमानों ने ऐसा नहीं किया । स्सा प्रतीत होता है कि बदायनी ने इस आदेश की खींचातानी की है। ६. अकबर ने फारसी के प्रचार में उन्नति की तथा संस्कृत स्व हिन्दी को भी वाश्य दिया । पर बाबी को नष्ट करने का न तो उसने । कोई नियम बनाया और न ही बाज्ञा दी । बदायूनी की मांति कुछ - कटटर लोग संस्कृत को प्रोत्साहन मिलने से ही बरबी की ववनति समक
।
इस प्रकार यह नि:सन्देह कहा जा सकता है कि अकबर ने अपने पूर्वजों के क का दमन करने के लिये कदापि प्रयल नहीं किया था । इस्लाम की उपेक्षा करने के लिये उस पर जो वारोप लगाये गये है वे निराधार, निर्मल तथा थोपे है । बपानी कटटर पाप मुसलमान था
30- A1-Badaani Trans. by N.H.Love Vol. II P. 213 31 - Al-Hadaant Trans. by h.H.Lom Vol. II P. 317.
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