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अकबर की धार्मिक नीति
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शास्त्रियों के अनुसार जो मनुष्य पूर्णत्व को प्राप्त हो चुका है वीर - जिसमें श्वर का देवत्व है उसे सिजवा किया जा सकता है। बादशाह इनसान - ए - कामिल है, इस लिये उसे सिजदा करना चाहिये वीर इसे सिजदा - ए - तामि कहा जाता था । तर्क की दृष्टि से यह ठीक है। लेकिन यहां यह उल्लेखनीय है कि बकवर सब समय सिजदा करने पर बाध्य! नही करता था और इसे सिजदा नहीं, जमी बोस कहा जाता था। ६. अकबर पर यह आरोप लगाया गया कि उसने मुसलिम त्योहारी ! को छोड़कर हिन्दू त्योहारों को अपना लिया था लेकिन इसके विरुद्ध मी यह ता दिया जा सकता है कि तुर्क व मंगोलों के स्वभाव का यह लचीला पन था कि वे अपने से अधिक श्रेष्ठ संस्कृति के तत्वों को अपना लेते थे । सुल्ताना रजिया ने भारतीय परम्परा के अनुसार राजकीय छत्र । रखने की प्रथा अपना ली तो सिकन्दर लोदी ने प्राचीन भारतीय हिन्दू राजाओं की स्वर्ण के लादान की प्रथा ग्रहण कर ली । यदि अकबर ने! भी ऐसी ही भारतीय परम्परा, रीति - रिवाज और त्योहार अपना ! लिये तो यह सामाजिक और सांस्कृतिक बात थी, थामिक नहीं । इसके अतिरिक्त उसकी अधिकांश प्रजा हिन्दू थी और वह हिन्दुओं के सानिध्या व सम्पर्क में अधिक था राज्य को स्थायित्व व दृढ़ता प्रदान करने के लिये ! और हिन्दुओं को सन्तुष्ट करने के लिये हिन्दुओं की ऐसी परम्परा अपनाना या उनके त्योहार मनाना एक राजनीतिक और न्याय संगत बात थी । ७. इस्लामी परम्परा के अनुसार एक व्यक्ति चार विवाह कर चार पत्नियां रख सकता है। एक बार बादतखाते में अकबर के बादेश पर - विद्वान मुल्ला और शेखों के बीच इस प्रश्न पर वाद-विवाद आयोजित किया गया कि एक व्यक्ति कितने विवाह कर सकता है ? बदायुनी ने। स्वयम् लिखा है कि इस वाद विवाद में इमाम, मलिक और शिया लो।
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