Book Title: Akbar ki Dharmik Niti
Author(s): Nina Jain
Publisher: Maharani Lakshmibhai Kala evam Vanijya Mahavidyalay

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Page 151
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अकबर की धार्मिक नीति www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 131 समझ रहे थे, सहर्षं मुगल साम्राज्य को स्वीकार कर लिया । ८. राजपूतों की सेवाएं मुगल साम्राज्य की कई पीढ़ियों को प्राप्त : For Private And Personal Use Only अकबर प्रथम मुसलिम बादशाह था, जिसने राजपूतों के साथ उदारता ! यता और मैत्री का व्यवहार किया । सल्तनत काल में सुलतानों ने राजपूतों के प्रति संकीर्णता, धमन्चिता और आंतक की नीति अपनाई थी । इस लिये वे अपने राजवंशों को चिरस्थाई और दृढ़ बनाने में असफल रहे । परन्तु अकबर अपनी उदार, सहिष्णु और मैत्री पूर्ण राजपूत नीति के कारण पूर्व सुलतानों की अपेक्षा अधिक सफल रहा। राजपूत से अपने सम्बन्ध की दृढ बारे स्थाई बनाने के लिये बकबर ने प्रमुख राजपत राजवंशों ! की राज कन्याओं से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये । अकबर ने आमेर, बीकानेर तथा जैसलमेर की राज कन्याओं से विवाह किये। जिन राजपत राजाओं ने अकबर से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये अथवा आत्म समर्पण कर दिया, उन राजपूत नरेश, सामान्तौ और सम्वन्धियों को उनकी योग्यता और प्रतिभा के अनुसार सैनिक और असैनिक पद पर नियुक्त किया गया । इससे अकबर को अनेक वीर और रणकुशल सेना नायकों, प्रशासकों प्रान्त पतियों और राजनीतिज्ञ की अमूल्य और अनूत पूर्व सेवाएँ प्राप्त हो गयी । इन्होंने बाल एंव आन्तरिक विद्रोहों का दमन कर - साम्राज्य में शांति स्थापित करने में महान योगदान दिया । वे मुगल साम्राज्य की रीढ की हडडी बन गये । बामेर की राजकुमारी, हरकू बाई! से उत्पन्न पुत्र सलीम को अकबर ने अपना उत्तराधिकारी बनाया । इस विवाह ( अकबर का हरकू बाई ) के महत्व के बारे में डा० बेनीप्रसाद ने लिखा है कि यह विवाह भारत की राजनीति में नवयुग के उदय का प्रतीक था, इससे देश में उत्तम शासकों की पीढ़ियां चली और इससे मुगल सम्राटा की बार पुश्तों तक मध्य कालीन भारत के सर्वोच्च सेनानायक और कूट नीतिज्ञों की सेवाएँ प्राप्त हो सकी । -

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