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अकबर की धार्मिक नीति
विभिन्न जातियों को एक दूसरे के अधिक निकट लाने के विचार से किया गया था । इसकी रचना सर्वजनित सहिष्णुता के सिद्धान्त पर की गई थी और स्वयम् सम्राट ने सभी धर्मों में से अच्छी बाते संग्रहीत करके इसमें रखी थी ।
दी नहलाही के अभ्युदय के कारण :
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दीनलाही का अभ्युदय निम्नलिखित कारणों और परिस्थितियों
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से हुआ
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(१) उदार विचार धाराएँ अकबर को विरासत में प्राप्त हुई । जैसा कि पहले भी कहा जा चुका है कि वंश परम्परा, पैतृक सहिष्णुता, माता, पिता, संरक्षक और शिक्षाक की उदारता, धार्मिक भावना और विश्वासौं का प्रभाव अकबर पर पड़ा । इन्होंने अकबर की धार्मिक नीति व निष्ठा को उदार पंथी बनाने में बड़ा योगदान दिया । शिक्षक बल लतीफ द्वारा पढाये गये सुलह कुल अर्थात सर्वजनित शान्ति के सिद्धान्तों को वह जीवन पर न मूला । हिन्दु राजकुमारियों के साथ हुए विवाह तथा राजपूत व हिन्दू अधिकारियों के सान्निध्य व सम्पर्क से अकबर हिन्दू धर्म के सिद्धान्तों से अधिकाधिक परिचित होने के साथ साथ विभिन्न धर्मों के प्रति और भी अधिक सहिष्णु और उदार हो गया । इस उदार भावना की परिणति दीन इलाही के रूप में प्रस्फुटित हुई । (२) अकबर के शासन के प्रारम्भ होने के पूर्व व्यापक धार्मिक आन्दोलन नवीन धार्मिक जागृति और चेतना तथा हिन्दू और सूफी सन्तों के असाधारण अध्यात्मवाद ने उदारता, सहिष्णुता, प्रेम और भावना का वातावरण निर्मित कर दिया था । इस वातारण ने ईश्वर की एकता और वर्ग विनाश पर दिया । तथा विभिन्न भों के समन्वय को प्रोत्साहन दिया । हिन्दू मुसलिम सन्तों ने रेपेश्वर वाद और बंधुत्व पर धार्मिक वाला उम्र और साम्प्रदायिक व भाव के उन्मूलन पर, धार्मिक
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