Book Title: Akbar ki Dharmik Niti
Author(s): Nina Jain
Publisher: Maharani Lakshmibhai Kala evam Vanijya Mahavidyalay

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Page 124
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ਡ੨ ੴ ਸੰਲ ਸੰਰ 107 (३) सब के साथ धीमे स्वर से कोमल वागी, मली बात बार मधुर भाषण से बातचीत करता तथा सहव्यवाहार करता । (४) अच्छे और उड्भुत कार्य करने की इच्छा रखना ।। (५) अपने बन्धुओं से सद्व्यवहार करना और उनकी इच्छाओं को अपनी ईच्छा के ऊपर महत्व देना । (६) इटकर्मियों को क्षामा दान देना और कोष का नरसी से निरा. करण करना । (७) बीवों से पूर्ण विरक्ति और परमात्मा को से लगाव रखना । (E) बपने कर्मों के फलों और प्रभाव पर विचार करना, मान करना, तथा भक्ति व ज्ञान की वृद्धि करना । (६) सांसारिक अस्तित्व के बन्थों से मुक्त होने तथा परलोक के लिये पुण्य संचित करने हेतु लालसा रखना और कार्य करना । (१०) श्वेश्वर वाद में विश्वास करना, भगवत प्रेम और भगवत भक्ति में आत्मा को लगाना और लात्मा का परमात्मा में संयोग करना । हस प्रकार व्यक्तिगत जीवन की पवित्रता और जीवन के कार्यों के प्रति पवित्र दृष्टिकोण पर हन सिद्धान्तों में अधिक का दिया गया है। ये सिद्धान्त विश्व व्यापी है और गभग प्रत्येक घर में पाये जाते है । दीन इलाही के रीति-रिवाज व नियम : दीन इलाही के रीति - रिवाज व नियम अधोलिजित थे - पीन लाही के अनुयायी जब परस्पर एक दूसरे से मिलते थे तो कमि वादन के लिये एक कहता था । " अल्लाहो अकबर उसके उत्तर में दुसरा जवाव देता था जल्ले • जलाते हू । रेसा वाहने का उदेश्य मनुष्य को उसके जीवन की उत्पत्ति पर सौ कने बार इश्वर की कृतज्ञ स्मृति में ताजा और सजीव रखना था ।" १० दीन इलाही के सभी सदस्थ सम्राट अकबर 10- Ain-1-Akbart Trans, by H. Blochmenn Val.I.P. 175. + + + + + + + + + + + + + + + + + + For Private And Personal Use Only

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