Book Title: Akbar ki Dharmik Niti
Author(s): Nina Jain
Publisher: Maharani Lakshmibhai Kala evam Vanijya Mahavidyalay

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Page 125
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अकबर की धार्मिक नीति को साष्टांग प्रणाम करते थे। जिसे जमीन बोस अथवा सिजदा मी कहा जाता है और जो कि हिन्दू तथा मुसलमान दोनो धर्मों में प्रचलित थी स्मिथ लिखता है कि दीन इलाही के प्रत्येक सदस्य को अपने जन्म दिन पर दावत देना और दान पुण्य करना पड़ता था । इस प्रकार मृत्यु के पश्चात मोज देने की प्रथा के स्थान पर हर सदस्य को अपने जीवन काल मैं ही सुन्दर श्राद्ध भोज देना पड़ता था, जिससे वह अपनी अन्तिम यात्रा के लिये पुण्य संचय कर सके । ११ जहां तक निम सके, दीनलाही के सदस्यों को मांस भक्षण की छूट थी । जन्म के माह में तो वे मांस को छू भी नही सकते थे । कसाइय मछेरो और चिड़ीमारी के बर्तन ये लोग काम में नहीं लाते थे। लहसुन, प्याज खाना भी निषिद्ध था । ** Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 11- Smith: Akbar the great Mogul P. 218. 12- Smith Akbar the great Mosul P. 219 13- Atn-1-akbari Vol, I. P. 166 इस मत के अनुयायों को सूर्य और अग्नि की उपासना करनी पड़ती थी । प्रात: सन्ध्या, मध्यान्ह और मध्य रात्रि चार बार पूर्व दिशा की और मुंह करके पूजा की जाती थी । मृतक मनुष्य के दाह संस्कार के सम्बन्ध में स्मिथ का कहना है कि लोगों के सिर पूर्व की वार तथा पैर दक्षिण की ओर करके दफनाये जाते थे । अकबर ने इसी तरह अपने शिष्यों को भी सोने की आज्ञा दी थी । १२ अबल फजल लिखता है कि "Members should not chhabit with pregnant, 01d and barren women for with girls under the age of puberty " 13. इस्लाम धर्म में नमाज के समय स्वर्ण और जरी के वस्त्रों को पहनने की मनाही है पर दीन इलाही में सार्वजनिक प्रार्थना के समय और दूसरे समय में इनका धारण करना आवश्यक था । इस मत के अनुयायियों For Private And Personal Use Only 108

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