Book Title: Akbar ki Dharmik Niti
Author(s): Nina Jain
Publisher: Maharani Lakshmibhai Kala evam Vanijya Mahavidyalay

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Page 132
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति 115 निष्कर्ण रूप में हम कह सकते है कि दीन लाही अकबर के पोथे व फूठे बपिमान की उपज था । हास्यास्पद निरर्षक योजना और निरकुंश एकतंत्र का रुप मी नहीं था, यदि ऐसा होता तो वह अपने सम्बन्धियाँ मित्रों तथा दरबारियों को दीन इलाही स्वीकार करने को - काता, उन पर उसे लादने का प्रयत्न करता । वह तो उदार व सं . निरपेडा विचार धारा का श्रेष्ठ शासक था । वह हिन्दुओं और मुसलमानों को स्क राष्ट्रीय धर्म में बांधना चाहता था, दोनो जातियों में - राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक वार धार्मिक स्कता स्थापित करता चाहता था, विमिन मा के सिद्धान्तों का स्की में समन्वय करना चाहता था। इस लिये हम कह सकते है कि दीन काही अकबर की . समन्वय प्रवृत्ति और उदार सहिष्णु प्रकृति की महान बभिव्यक्ति पी।। इस्लाम दमन के सम्बन्ध में अकबर पर लगाये गये धारोप : दीनलाही के सम्बन्ध में परिचय प्राप्त कर लेने के पश्चात प्रश्न यह उठता है कि क्या कबर ने इस्लाम धर्म को त्याग दिया था ? इस प्रश्न के उत्तर में हमें अकबर पर लगाये गये गारोप तथा उनकी समीक्षा करके या देखना होगा कि वास्तविकता व्या है ? स्मिथ तथा इल्जर हेग बादि इतिहासकारों का मत है कि जब एक और अकबर ने प्रत्येक के लिये सहिष्णु नीति का बकम्चन किया। तो दूसरी और उसने कटटर परसाम धर्म को हानि पहुंचाई । यह विचार ! धारा ईसाई धर्म प्रचारको तथा बदायनी देने कथन पर आधारित है। बेकारीज ने भी बदायूनी के मत का समर्थन किया और अकदर पर बाधुनिक र यूरोपीय इतिहासकारों ने इस्लाम की ओर से मुंह मोड़ने का आरोप लगाया । बदायुनी की पुस्तक "मुन्तखब-उता-तवारीख" के आधार पर तथा ईसाई धर्म प्रचारको के कथनों के आधार पर अकबर पर जो इस्लाम कां को शेड़ने का दोगारोपण किया गया है उसके For Private And Personal Use Only

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