Book Title: Akbar ki Dharmik Niti
Author(s): Nina Jain
Publisher: Maharani Lakshmibhai Kala evam Vanijya Mahavidyalay

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Page 122
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकसर की धार्मिक नीति बैठ धर्म मानकर अपनाने को तैयार रहै । " बपानी जो कि शायद उस समय वहां उपस्थित था लिखता है कि इस नये 4 के प्रस्ताव का विरोध सभा में ही गमेर के राजा विहारीमल ने क्यिा । उसने कहा कि यह स्वैश पूर्वक स्वीकार कर लूंगा कि हिन्दुओं और मुसलमानों में प्रत्येक की खराब है । पर हम केवल यह बताये कि नया र्म क्या है और वह क्या मत रखता है, ताकि में विश्वास कर। सकुं । उस पर अकबर थोड़ी देर विचार मग्न रहा और फिर उसने राजा भगवन्त दास को नया धर्म स्वीकार करने के लिये गाग्रह नहीं किया । ७ ॥ बगुल फजल पी इससे सहमत है । इसी प्रकार कुछ वर्षों बाद अकबर ने मानसिंह से पश कि क्या वह दीन इलाही के अन्तर्गत अकबर का शिष्यत्वा स्वीकार करेगा ? इस पर मानसिंह ने उत्तर दिया कि यदि शिष्यत्व। का यही अभिप्राय है कि अपने प्राणों का बलिदान करने को तैयार रहना चाये तो में अपनी जान को हमेशा हथेली पर रखता हूं और इसे प्रमा-1 णित करने के लिये अधिक प्रमार्गा की आवश्यकता नहीं है, किन्तु यदि । इसका अर्थ यह है कि अपने को को छोड़ा जाय तो में हिन्दू है । इसके बाद अकबर ने मानसिह से बातचीत बन्द कर दी और उसे स्थानान्तरित करके बंगाल भेज दिया ।" दीनालाही का विधि विधान : - - - - -- -- - -- - - - - - -- - -- - दीनहलानी का प्रथक विधि विधान था । इस सम्प्रदाय में सम्मिलित होने वाले प्रत्येक अक्ति को अकबर से दीपा लेनी पड़ती थी । जब कोई। व्यक्ति इसका सदस्य होता चालता था तो उबुल फजल के पास, जो इस 6-Smith : Ak bar the great Mogul, P. 212, 7. Al-Ha da oni Trans, by WE, LOW Tal. II. P. 323 Ain-1___Akbari Trans. by H.Blochnam Vol. I. P. 198 Sw AL-Ba da oni Trans, by W.H. Lowe Vol. II P. 375. For Private And Personal Use Only

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