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भळसर की धार्मिक नीति
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परन्तु दीन इलाही कोई नवीन धर्म या सम्प्रदाय नहीं था इसमें जो सब थमाँ के सत्य सिद्धान्तों का समन्वय धा । अकबर की स्वयम की इच्छा मी किसी नवीन धर्म को स्थापित करने की नही थी। इसके अलावा नवीन धर्म के लिये यह बावश्यक है कि उसका कोई क लिखित धर्म ग्रन्थ को, निश्चित प्रार्थना हो, कोई मंदिर या निश्चित उपासना गृह हो, दोई साम्प्रदायिक धार्मिक चिन्न लथवा पुरोहित वर्ग हो । लेकिन दीनइलाही में ऐसा कुछ न था । इस लिये हम दीन इलाही को एक नवीन धर्म। सम्प्रदाय तथवा मत नही कह सकते है और न ही अकबर को उसका प्रवर्तक अथवा पैगम्बर । दीन इछाही तो स्क सामाजिक और धार्मिक संस्था थी जिसका आश्य देश के विभिन्न विलम्वियों को परस्पर मिलाना था । इसकी नीव प्रेस, सच्चाई, समाचरण, संयम और सहिष्णुता पर था. रित थी तथा इसमें सुलह - ए - कुल छ के सिद्धान्त थे । इसमें हिन्दुओं, नियो, पारसियों के सिद्धान्तों का सार था और ईश्वरी एकता का सिद्धान्त था। दीन इलाही का प्रारम :
___ मार्च १५८२ में काकु अभियान से लौट आने के वाद अकबर ने अपने ! प्रमुख अधिकारियों और दरबारियों का एक सम्मेलन काया और उनके - सम्मुख दीन काली का स्वरूप प्रस्तुत किया । उपस्थित रहस्यों ने वीन इलाही के स्वरूप से सहमति प्रगट की और कहा कि बादशाह ईश्वर के बहुत समीप है। उसका पद बहुत ऊंचा और उसकी बुद्धि बड़ी प्रबल है । इस लिये वह सारे साम्राज्य के लिये एक पूर्ण और सार्वजनिक निर्माण के लिये बावश्यक देवता, उत्सव, बलिदान, नियम, रीति रस आदि जो. मी आवश्यक हो, निश्चित करें । इस सभा के बाद अकबर ने एकछ इट। शेख को सब बोर यह पोषित करने मेजा कि अल्पकाल में ही सम्पूर्ण मुगल साम्राज्य में परवार से प्रचारित 4 माना जायेगा और सभी लोग इसे
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