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अकबर की धार्मिक नीति
दूसरा उधर जाता तो यह बड़ा दोष है । अत: हमको चाहियें कि हम सब को एक करदें, परन्तु इस प्रकार कि वे स्कता के साथ एक और सम्पूर्ण हो ताकि किसी धर्म के गुण से वे वंचित न रह जाये एक धर्म साथ उन्हें दूसरे धर्म की अच्छाई का भी लाभ मिल जाय.
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के गुण के साथ इस प्रकार ईश्वर का सम्मान होगा, लोगों को शान्ति प्राप्त होगी और साम्राज्य की रक्षा होगी । ३ अत: अकबर ने विभिन्न धर्मो के सत्य तथा महत्व पूर्ण सिद्धान्त अपने मस्तिष्क में संकलित कर लिये और फिर उन्हें लिपिबद्ध करा लिया । इनमें सब धर्मों का समन्वय था, जो कि दोन हलाड़ी के नाम से विख्यात हुआ ।
दीन इलाही का स्वरूप :
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मुसलिम इतिहासकार तथा कटटर धर्मान्य मुल्ला बदायूंनी ने दोन इलाही को एक नया धर्म माना है । स्मिथ ने भी इसे एक नया धर्मं माना
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He says-Akbar's long-Cherished project of establishing throught his empire one universal religion, formilated & Controlled by himself, was avowed publicly for the first time in 1582,"
एस०आर० शर्मा का मत है कि ^^ उसने अपनी प्रजा के दोनों मुख्य वर्गी (हिन्दू और मुसलमान ) के पारस्परिक मतभेदों को मिटाने का यत्न किया । उसने दोनों जातियों में परस्पर विवाद की प्रथा का उदाहरण उपस्थित किया । उऊंचे पद और उपाधियों देने में उसने सबको बराबर समझा और सब से बड़ा काम उसने यह किया कि एक नया घ चलाया जिससे एक नये संसार की सृष्टि होगी ।
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3- According to Bartoli quoted from Smdth: Akbar the great Magul P,211-12
14 Smith : Akbar the great Mogul P. 209.
एस. बार
शर्मा हिन्दी अनुवादक मथुरालाल
शर्मा
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भारत
मैं मुगल साम्राज्य पृ० २६८