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मकबर की धार्मिक नति
" यह सुनने पर कि हाजी ब्राहीम ने पीली और लाल रंग की पोशाके पहनने को न्याय संगत घोणित करते हुए फतवा दिया है, मीर आपिल: सैयद मुहम्मद की उपस्थिति में उसे चूत और मक्कार कहा बार उसे मारने के लिये अपना डन्डामी उठा लिया । २२ इस प्रकार के कगड़ासे कटटर इस्लाम में अकबर का विश्वास हिल गया । इस्लाम धर्म के प्रति अकरबर का दृष्टिकोण •
इनाइतबाने में इस्लामी व सूफी विद्वानों के इस प्रकार के उत्तर दायित्व शून्य व्यवहार, इस्लाम की तात्विक दृष्टि से विवेचना करने की असमर्थता तथा इन लोगों के व्यक्तिगत स्वार्थों को देख कर अकबर बीफ उठा । उसने मुल्ला बदायुनी को गाली देने वाले या हाथापाई करने वाले व्यक्तियों की रिपोर्ट करने का मार दिया और घोषणा: की कि भविष्य में जिन लोगों में ऐसे दोण होगे और जो उदण्डता - करेंगे, उनको हबादत खाने से निकाल दिया जायेगा । बातदाने में ऐसे अशिष्ट, संकीण, मान्ध, उदण्ड बार उत्तर दायित्वहीन व्यवहार तथा अनवरत कगड़ी से अकबर बहुत ही खिन्न हो गया था । १५७८-७९ के बाद अलवर के मन में इन विदान व उल्माण के चरित्र और धर्म के । प्रति किंनित भी श्रद्धा नहीं रही थी। उसने अनुभव कर लिया था कि इन उल्माणों में जिन पर कि बुद्धि का सिर्फ कलेवरा ही है, सत्य को खोजने और जानने की पिपासा नहीं है । उसने हसास के विदानों में ही मेद माव, संकीर्णता और कटुता पाई । अत : धीरे - धीरे इस्लाम पर से उसका विश्वास उठने लगा। विषा विजयबी लिखते है कि .... जब मुसलमानी र्म पर से उसकी श्रधा हट गई और जब उस पर वह नाराज हुआ था तब साफ • साफ लफर्जी में वह कहने लगा था कि -" जिस मुहम्मद ने दस बरस की छोकरी बायशा के साथ व्याह किया था
22 - AL-Badaoni. Trans, by W. H. Lowe Vol. II P, 214.
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