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अकबर की धार्मिक नीति
पुरोहितों में मैहरजी राणा का प्रमुख स्थान था । मैहर जी ने इबादतलाने में होने वाली गोष्ठियों, प्रवर्ना और वाद - विवाद में भाग लिया । व्यक्तिगत मैटी के समय अकबर ने मेहर जी से पारसी की के विभिन्न पहलुओं पर चर्ति की । मेहर जी ने उकबर को पारसी धर्म के गुप्त वापरणों से परिचित कराया तथा उसके विशेण शदा, रीति, रिवाजो उत्सवा और सिद्धान्तों से अवगत कराया । उसने अकबर को पारसी धर्म के प्रवर्तक, जौरास्टर के किपाग चमत्कारों के विषय में, सूर्य, चन्द्र, अग्नि के प्रति श्रद्धा व भक्ति एक ईश्वर की पूजा, पवित्र, सत्य, सदेह, का पहनना कुश्तरी, नौरोज - ए - खास तथा नौरोजर - धाम के विषय में समझाया । अकबर मैहर जी राणा के पारसी धर्म के सिद्धान्तों के प्रति पादन, उसके विचारों और जीवन की पवित्रता! से हतना अधिक प्रभावित हुआ कि उसने मैहर जी को नवसारी के समीप परचोल में रखी गांव में २०० बीघा जमीन माफी में जीवन निवांह के लिये दे दी । सब१५६५ में दस्तूरजी राणा के निधन के बाद उनका पुत्र मैकुलाइ १५६५ में अकबर के दरबार में गया । वहां उसनेसम्राट से भेंट की अकबर ने इससे प्रसन्न होकर १५६ ६ मैं उसे सौ बीघा भूमि और पुरुस्कार। में दी कैकुबाद को यह भूमि सूरत जि में तारली परगने के तवरी गांव में प्राप्त हुई।
पारसी की का अकबर पर प्रभाव :
दस्तर मेहर जी राणा के सत्संग और उनके प्रवना, विचारों सथा पारसी की के सिद्धान्तों से उकबर इतना अधिक प्रमावित हुआ कि उसने पारसी धर्म के कुछ सिद्धान्ता, रीति - रिवाजों व परम्पराओं को बफा लिया था । पारसी विधान के अनुसार रामहल में पवित्र अग्नि प्रज्वलित की गयी । बदानी लिखता है कि -" महल के पास ही एक अग्नि मंदिर बनवाया गया था । मुल फजल की देख रेख में
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