Book Title: Akbar ki Dharmik Niti
Author(s): Nina Jain
Publisher: Maharani Lakshmibhai Kala evam Vanijya Mahavidyalay

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Page 75
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अकबर .. की धार्मिक नीति -- अकबर के प्रारम्भिक धार्मिक विचार - வன ஷ ----- १ धार्मिक नीति का विकास ( खुतबा पढ़ने से पूर्व सन् १५७६ तक ) v de vie nodo अबकर १५५६ में सिंहासन पर बैठा । १५५६ से १५६२ तक वह सच्चे मुसलमान शासक के समान था । मौलाना मुहम्मद हुसैन लिखते है कि ठार बीस बरस तक को उसकी यह दशा थी कि वह मुसलमानी धर्मं की आज्ञाओं को उसी प्रकार श्रद्धा पूर्वक सुनता था जिस प्रकार कोई सोध साधा धर्मनिष्ठ मुसलमान सुना करता है और उन सब धार्मिक बाज्ञाओं का वह सच्चे दिल से पालन करता था । १ सिंहासनारोहण के प्रारंभिक काल में तो सब के साथ मिल कर नमाज पढ़ता या स्वयम् अजान देता मसजिद मैं अपने हाथ से फाड़ू लगाता था, बड़े मौलवियों का बहुत आदर करता था, उनके घर जाता उनमें से कुछ के सामने कमी कमी उनकी जूतियां तक सीधी करके रख देता था। वह - साम्राज्य के मुकदमों का निर्णय शरब और मुल्लाओं के फतवे के अनुसार किया करता था, फकीरों और शेखों के साथ बहुत ही निष्ठा पूर्वक - व्यवहार किया करता था और उनकी कृपा तथा आर्शीवाद से ठाम उठाया करता था । बड़े कुल्लाओं और 21T, था, - www.kobatirth.org - अकवरी मुहम्मद हुसैन लिखते है कि अजमेर में, जहां स्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह है, बकबर प्रति वर्णं जाया करता था । यदि कोई युद्ध अथवा और कोई आकांक्षा होती या संयोग वश उस मार्ग से जाना होता, तो वर्ष के बीच मैं भी वहां जाता था । एक पड़ाव पहले से ही पैदल बरने लगता था । कुछ मन्नतें ऐसी भी हुई जिनमें फतहपुर या आगरे - - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir · For Private And Personal Use Only दरबार हिन्दी अनुवादक रामचन्द्र जम पहला माग पृष्ठ ६७. 61 -

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