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अकबर
की धार्मिक नीति
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बौर उसे शिया बनाने का भरसक प्रयत्न किया, पर वह भी उसके उदार हृदय को आवर्णित नहीं कर सका । इसके बाद वह सूफी मत की ओर कुका । लूफी विद्वान शेख मुबारक तथा उनके दोनों पुत्र फैजी व अबुल फजल तथा अन्य सूफी विद्वान मिर्जी सुलैमान ने उसे सूफी मत से अवगत करा कर सूफी सम्प्रदाय की ओर वाकर्णित किया ।
१०. इबादत खाने की स्थापना और इस्लाम धर्म पर वाद विवाद
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उन समस्त सम्प्रदाय का गहन ज्ञान प्राप्त करने के लिये अकबर ने फरवरी मार्च १५७५ मै फतेहपुर सीकरी में इबादत खाना अथवा प्रार्थना गृह बनवाया । अकबर अपने मुसलमान दरबारियों तथा उल्माओं के साथ यहां आकर सभा करता था । इस प्रकार सत्य का विकास होने लगा । धार्मिक समारै रात रात भर और कमी कभी दूसरे दिन प्रात: काल और दोपहर तक चलती थी जिससे पता चलता था कि किसमें तर्क है ? कल्पना है ? और बुद्धि है ? इन समाज में दर्शन, धर्म, कानून और सांसा - रिक सभी प्रकार के विषयों और समस्यावों पर चर्चाएं होती थी ।
मखदूम उल मुल्क की उपाधि से विभूषित शेख अब्दुल्ला सुलतानपुरी, काजी याकूब, मुल्ला बदायूंनी, हाजी इब्राहीम, शेख मुबारक बल फजल आदि प्रमुख विद्वान इनमें भाग लेते थे । इन विचार गोष्ठियों में विशेष गुण, बुद्धि व प्रतिमा प्रदर्शित करने वालों को अकबर सोने चांदी के सिक्के देकर पुरस्कृत करता था । . १६ किन्तु धीरे धीरे इन धार्मिक और दार्शनिक चर्चायों के समय, शेख, सैयद और उल्माबी की असहनशीलता, अनुशासनहीनता, सामान्य वृद्धि का अभाव उकार, साम्प्रदायिकता, धमन्यिता, अभद्रता, तथा अहंकार का खुला प्रदर्शन होने लगा । इस्लाम के नियमों के तर्क सम्मत और वास्तविक अर्थ दे सकने का उनमें जो अभाव था, वह प्रदर्शित हो गया । मलदूम उठ मुल्क बौर
Vol. III. P, P. 112-13.
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