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अकबर की धार्मिक नीति
के धार्मिक ग्रों बार प्रथम श्रेणी के संस्कृत ग्रन्थों का फारसी में अनुवाद करने के लिये अनुवाद विभाग खोला गया । विधा विज्यजी लिखते है - " अकबर साहित्य का पूरा शौकीन था । साहित्य में धर्मशास्त्रों और ज्योतिण, वैयक वादि समस्त वियाओं का समावेश हो जाता है । अकबर सब में रुचि रखता था, इसी लिये अथर्ववेदक, महाभारत, रामायण, हरिवंश पुराण तथा मास्कराचार्य की लीलावती और इसी तरह के इसरे : खगोल तथा गणित विधा के ग्रन्थों का फारसी में अनुवाद करवाया था संगीत विया के सुनिपुण विद्वानों का भी उसने अपने दरबार में अच्छा । सत्कार क्यिा था । --- उसके दरबार में ५E कवि थे। जी उन सब में! श्रेष्ठ समझा जाता था । १५२ पंडित और चिकित्सक थे । उनमें ३५ हिन्ई थे । संगीत विशारद सुप्रसिद्ध गायक तानसेन और बाबा रामदास मी . वकबर की ही सभा के चमकते हुए हीरे थे । " १७
उसके समय में मुसलमान कवियों ने हिन्दी साहित्य में कविताएँ की। कुछ मुसलमानी कवियों ने तो हिन्दू संस्कृति का ऐसा सफल वर्णन क्यिा है कि अगर उनके नाम उनके ग्रां से हटा लिये जाये तथा उन गों को बन्य हिन्दू लेखकों की कृतियों में मिला दिया जाये तो पहचानना सम्भव हो जायेगा । इस क्षेत्र में अब्दुल रहीम खान लाना तया रसखान का नाम सर्वोच्च है।
अकबर ने स्थापत्य कला के पोत्र में हिन्दू और मुसलमान दोनों कला - शैलियों का सुन्दर समन्वय किया । स्थापत्य कला में अकबर की यह नीति उसके बारा निर्मित फतहपुर सीकरी के मां दीवान - ए - खास, मरियम का महल, तुर्की सुलतान का महल, जोधा बाई का महल, पंच महल, वागरे के क्लेि में जहांगीरी महल, लाहौर और इलाहावाद के किले वादि भवनों में अभिव्यक्त हुई है। चित्रकला तथा संगीत कला के पोत्र मैं मी अकबर ने हिन्दू मुसलिम समन्वय करवाया । उसके दरबार में हिन्दू मुसलिम दोनो ही संगीतज्ञ थे।
१७ - सूरीश्वर और समाट अकबर हिन्दी अनुवाद कृष्णलाल वर्मा पू० २४३-४४
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