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अकबर की धार्मिक नीति
बकबर और से सीथा वागरा गया और यहां से वापिस वाकर सांभर में उसने ६ फरवरी १५६२ को हरकू बाई से विवाह कर लिया । हिन्दू - लड़की के साथ यह उसका पतिला ही व्याह हुवा था । इसके बाद अन्य राजपूत राजकन्याओं से भी उसके विवाह हुर । इन विवाह से मकबर के शासन और धार्मिक नीति में परिवर्तन हुवा । M - जाति और वंश के मेव - पाव को मिटा कर हिन्दू - मुसलिम कटता को पूरा करने की नीति यहीं से प्रारम्भ होती है । राजपा और मुगलों के पारस्परिक संघर्ष का तो अन्त होने ही लगा था पर अकबर भी हिन्दू रानियों के प्रभाव से हिन्दू पी की बोर नाकृष्ट हुवा । उसने अपनी रानियों को वार्मिक संसारी, विधियों पर पूजा पाठ करने की स्वतंत्रता दे दी। २ - बाध्यात्मिक चेतना का उपय -
सन १५६२ - में ही यानि जब अकबर बीस वर्ष का हुवा तब प्रजा की असी हालत जानने के लिये उसने फकीरा बोर साधु - सन्ता का सहवास करता शुरु किया । यह ठीक भी है कि निष्पा, त्यागी फकीरों वीर साधुओं के जरिये प्रजा की उसकी हालत बच्छी तरह से पालुम हो सकती है। साधुओं से मिल कर जैसे वह प्रजा की वसली हालत जानने की कोशिश करता था वैसे ही वह आत्मा की उन्नति के - सानों का मी अन्वेषण करता था । अकबर ने कहा है कि -" on the Completion of my trentieth year, I experienced and inte ernal bitterness & from the lack of spiritual provisiem for my last joumøy, my soul mi seiged with exceeding sorrow इस तरह बीस वर्ष की आयु पूरी करने पर, यह सोच कर कि परलोक यात्रा के लिये धार्मिक जीवन नहीं बिताया उसे अत्यधिक दु:ख त्वा । इसी समय उसे एक बार आध्यात्मिक अनुभव हुवा । वह कहता है कि •
+Ain-1-Akbari Prans. byi.s. Jarrett Vol. III P. 4333
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