Book Title: Akbar ki Dharmik Niti
Author(s): Nina Jain
Publisher: Maharani Lakshmibhai Kala evam Vanijya Mahavidyalay

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Page 79
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति One night my heart was weary of the burden of 1110, when suddenly between sleeping and waking a strange vision appeared to me, & my spirit was some what comforted."5 इन विचारों से उसके हदय में यह माव कुरित हो गया कि जाति धर्म रहन - सहन के भेद - भाव का विचार किये बिना सभी वग के लोगों की नि:स्वार्थ सेवा से बढ़कर ईश्वर को प्रसन्न करने का अन्य कोई मार्ग नहीं है। ३ - युद्ध बन्दियों को मुसलमान बनाने का निर्णध : अकबर की इस नवीन नावना का प्रथम ठोस परिणाम यह हुवा : है कि उसने अपने बीसवे जन्म दिन ( १० अप्रैल १६६२६० ) को स्कनवीन आशा प्रसारित की, जिसके अनुसार युद्ध वन्धियों को गुलाम बनाने । तथा उन्हें बल पूर्वक इस्लाम स्वीकार कराने की मनाही कर दी गयी । इससे परे विजीत सेनार लोगों के स्त्री - बच्चों को दास बना लिया • करती थी । बन्दी हिन्दू सैनिकों की पत्तियां, बच्चों और सम्भवन्थियों का उपयोग करने के लिये इन्हें मुसलिम अधिकारियों को सौंप दिया जाता था । यह प्रथा इसलाम धमांनुमोदित मानी जाती थी । बादशाह नै । ईश्वर - भक्ति से और दूरदर्शिता तथा सासद विचार से प्रेरित होकर नादेश दिया कि उसके साम्राज्य से विजयी सेना का कोई सनिक ऐसा काम नही करेगा । सैनिक नाई शेटा हो या बड़ा उसको किसी को कमी दास बनाने का अधिकार नहीं था । अबुल फजल लिखता है कि बादशाह ने समझा कि स्त्रियों और निरपराथ बच्चों को दण्ड देना अन्याय है । यदि पुरुष पृष्टता का मार्ग ग्रहण करते है तो इसमें उनकी पत्नियों का क्या दोण है। यदि पिता बादशाह का विरोध करते है तो उनके बच्चों 5- A1n-1-Akbari Trans. by H.s. varrstt. Vol. II P.435 6- Akbamana Vol. II. P.P. 159-60. For Private And Personal Use Only

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