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अकबर की धार्मिक नीति
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गैर मुसलमानों को धार्मिक स्थान निर्मित करवाने की स्वतंत्रता
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विभिन्न अनुचित करो की समाप्ति के पश्चात उसने पवित्र धार्मिक स्थानों पर लगे सब प्रतिबन्धों को निरस्त कर दिया । फलत: हिन्दू सामान्तौ वीर राजपूत सरदारों ने अपने मंदिर, देवालय तथा ईश्वर के विभिन्न अवतारों के पवित्र देव स्थान बनबाने प्रारम्भ कर दिये । राजा मानसिह ने अत्यन्त सुन्दर बीर भव्य भवन निर्मित करवाये एक तो वृन्दा - वन में गोविन्द दास का लाल पत्थर का विशाल पांच मंजिला मंदिर और दूसरा वाराणसी में । उसने सिक्कों के गुरू रामदास को एक भूमि खण्ड जीवन निर्वाह के लिये दिया । इसी भूमि खण्ड में गुरु रामदास नै जल का छोटा तालाब खुदवाया और तब से यह स्थान अमृतसर ( अमृत का तालाब ) कहां जाता है। अमृतसर में सिक्खों ने एक गुरुब्बारा मी वन वाया | मुनि हीरविजय के प्रभाव और मुनि मानुचन्द्र के प्रयत्नों से अकबर
हीरविजय के नाम दो फरमान प्रथम १६ नवम्बर १५६० को और दूसरा १५६२ में प्रसारित किये । इनके द्वारा जैन समाज को शासन की ओर से कुछ विशेष सुविधाएँ दी गयी । सन् १५६० के फरमान मैं गुजरात के सुवेदार को यह आदेश दिया गया कि उस राज्य में किसी को भी जैन मंदिरों मैं हस्तक्षेप न करने दिया जाय, उनके जीर्णोद्वार में कोई बाबा न डाले तथा अजैन उनमें निवास नहीं करे । सन् १५६२ के फरमान के अनुसार मालवा गुजरात, लाहौर, सुलतान, बंगाल तथा कुछ अन्य प्रान्तों के - सूबेदारों को यह आदेश दिया गया कि सिद्धाचल, गिरनार, तारंगा, केशरियानाथ, बाबू, गिरनार और राजगिरी के जैन तीर्थ स्थानों और मंदिरों की पहाड़ियों को तथा बिहार और बंगाल में जैनियों के तीर्थं स्थानों व इन पहाड़ियों की तलहटी के सभी निवास स्थानों को जैनियों को सौप दिया जाय । १४, जैनियों ने उज्जैन में एक जैन मंदिर निर्मित
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१४ कभिसारियट : हिस्ट्री वांफ गुजरात खण्ड २ पू० २३३,३५
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