Book Title: Akbar ki Dharmik Niti
Author(s): Nina Jain
Publisher: Maharani Lakshmibhai Kala evam Vanijya Mahavidyalay

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Page 40
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति था । अबुलफजा लिखना है कि सम्राट में हतनी वच्छी बात है कि मैं उनका पूर्ण रूप से वर्णन नहीं कर सकता । यदि में इस विषय पर • कोर्णा की मी रचना कप्तं तो भी वह सम्पूर्ण नहीं होगा ।"१० ____ अकबर की साक्षरता के विषय में विद्वानों में मतभेद है । यपपि वह अपने पिता हुमायूं और पितामह बाबर की तुलना में सुशिक्षित और विद्वान तो नही था किन्तु पूर्णतया निरंकुश भी नही था । उसके पिता हुमायं का! अधिकांश समय अपने माझ्या के विरुद्ध सैनिक अभियानों वीर युद्धों में तथा निवासन के संकों में व्यतीत एबा था । इस लिये वह अकबर की शिक्षा की समुचित व्यवस्था न कर सका । फिर भी कार पर बाधिपत्य स्थापित करने के बाद उसने अकबर की शिक्षा के लिये विदान मालवी नियुक्त किये । परन्तु अकबर का मन पढ़ने - लिखने में नही लगता था । उसने अपना बाल्याकाल खेलों, शिकार और घुड़दौड़ में व्यतीत कर दिया । बतएव वह ! पूर्ण रूपेण सापार एवं विद्वान न बन सका । श्री एन.ल. लॉ- लिखते! है कि • अकबर पूर्ण रुपैन तिरपार नहीं था । यदि वह लिख नहीं सकता। था तो कम से कम पढ़ तो अवश्य ही लेता था । • ११ इसके विपरीत कुछ विद्वानों का मत है कि अकबर निरपार था वे उसकी सादारता में संदेह करते है जैसा कि बकु फजल ने लिखा है - उसके पवित्र हृदय एंव पुण्यात्मा की अमिरु चि कमी भी बाहरी पढ़ने लिखने की और नहीं की । साक्षा-1 रता के प्रति उदासीन रहने पर भी उसका उत्कृष्ट ज्ञान माना समस्त मान-1 वता के लिये इस बात का योतक था कि समाट को ज्ञान कोण धीर समस्त +-+ +- + + + + 10-An1-1-Akbart- Vol. I Trans. by H.mochnann, Second edition P. 165. 111 - N.L. Law : Promotion of 1eaming in India during Mohommedan Aule P.P.139-43. + + + + + + + For Private And Personal Use Only

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