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अकबर की धार्मिक नीति
उसने तीन दिन तक कुछ मी न खाया पीया । अपने राजपूत सम्बन्धिय, सहयोगियों और मित्रों के प्रति भी अकबर उदार और स्नेही था ।
अकबर तर्क और विवेक में विश्वास करता था । वह वुद्धिहीन, नकल या अनुकरण को बुरा मानता था । He said If imitation were commendable the prophets would have followed their predecessors."18
वह बुद्धि और विवेक में अधिक आस्था रखता था और चाहता था कि लोग बुद्धि, विवेक गोरे तर्क के अनुसार ही कार्य करें । वह धार्मिक और लौकिक बातों को अपनी बुद्धि व विवेक के अनुसार उनके गुणों के आधार पर ही अंगीकार करता था । परन्तु अकबर की इस बुद्धिवादिता के साथ उसका अन्ध विश्वास भी जुड़ा हुआ था । अनेक बार वह बन्ध विश्वासी हो जाता था। शुभ और अशुभ दिनों और शकुनों में, ज्योतिण और भविष्य वाणीयों में, सत्कार और फूका फांकी में वह विश्वास करता था अनेक युवतियां अपने शिशुओं को निरोग करने के लिये या बच्चा होने के रिये उसकी मनौती मानती थी । और यदि ऐसा हो जाता था तो वह उसके लिये चढावे लाती थी । अबुल फजल लिखता है कि शाश्वत सुख, प्रामाणिक हृदय, अच्छे आचरण की सलाह, शारीरिक बल सुसंस्कार पुत्र प्राप्ति, मित्रों का पुनः समागम, दीर्घायु, धन सम्पत्ति और उच्च पदवी आदि अन्यान्य अनेक मुरादे लेकर कुन्ड के झुन्ड मनुष्य सम्राट अकबर के पास जाते थे । सम्राट श्रेय का जानने वाला था, इस लिये वह हर एक को सन्तोषप्रद उत्तर देता था । और उनकी धार्मिक समस्याओं को हल करने की योजनाएँ गढ़ता था । ऐसा एक भी दिन नहीं बीतता था जिस दिन लोग अकबर के पास से मंत्रोच्चारण व्यारा पानी के कटोरे पवित्र करवाने के लिये न जाते हो । १६ इस प्रकार अकबर में बुद्धिवादित
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Ain-1-Akbari Vol. III Trans, by H.8. Jarrett P,427 19 - Ain-1-Akbari Val. I Trans, by H. Blochmanm P.164.
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